क्षणिका
*
दर्पण में
जिसको देखा
वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में
केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा
तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका
तो उसको पाया.
*
तितलियाँ
जां निसार कर देंगी.
हम
चरागे-रौशनी
तो बन जाएँ..
*
२१-४-२०१०
*
दर्पण में
जिसको देखा
वह बिम्ब मात्र था
और उजाले में
केवल साया पाया.
जब-जब बाहर देखा
तो पाया मैं हूँ.
जब-कब भीतर झाँका
तो उसको पाया.
*
तितलियाँ
जां निसार कर देंगी.
हम
चरागे-रौशनी
तो बन जाएँ..
*
२१-४-२०१०
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