गीत : विश्वास
अमरेन्द्र नारायण
*
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
जाने कितनी बार विपदा ने चुनौती दी मनुज को
जाने कितनी बार उसकी शक्ति को झकझोर डाला
जाने कितनी बार नर को नाश की धमकी दिखाई
जाने कितनी बार उसको कष्ट में घनघोर डाला
पर मनुज भी तो मनुज है, उठ खड़ा होता है कहता-
“देखता हूँ कौन अब कितने अँधेरे ला रहा है!”
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
तमस कहता है मनुज से –“ध्वंस की क्षमता हमारी
तुम भला कैसे लड़ोगे कितनी ताकत है तुम्हारी?
आज तुम किस के भरोसे पर यहाँ इतरा रहे हो?
कुछ नहीं तुम कर सकोगे, चाहे झोंको शक्ति सारी!”
पर मनुज भी तो मनुज है,उठ खड़ा देता चुनौती -
“है अँधेरा किन्तु दीपक ज्योति -पथ दिखला रहा है!”
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
*
भूतपूर्व महासचिव,एशिया पसिफ़िक टेलीकॉम्युनिटी,बैंगकॉक
शुभा आशीर्वाद, १०५५, रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर ४८२००१,(मध्य प्रदेश)
अमरेन्द्र नारायण
*
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
जाने कितनी बार विपदा ने चुनौती दी मनुज को
जाने कितनी बार उसकी शक्ति को झकझोर डाला
जाने कितनी बार नर को नाश की धमकी दिखाई
जाने कितनी बार उसको कष्ट में घनघोर डाला
पर मनुज भी तो मनुज है, उठ खड़ा होता है कहता-
“देखता हूँ कौन अब कितने अँधेरे ला रहा है!”
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
तमस कहता है मनुज से –“ध्वंस की क्षमता हमारी
तुम भला कैसे लड़ोगे कितनी ताकत है तुम्हारी?
आज तुम किस के भरोसे पर यहाँ इतरा रहे हो?
कुछ नहीं तुम कर सकोगे, चाहे झोंको शक्ति सारी!”
पर मनुज भी तो मनुज है,उठ खड़ा देता चुनौती -
“है अँधेरा किन्तु दीपक ज्योति -पथ दिखला रहा है!”
है परीक्षा की घड़ी, विश्वास पर अपना अडिग है
बादलों की ओट से सूरज निकल कर आ रहा है!
*
भूतपूर्व महासचिव,एशिया पसिफ़िक टेलीकॉम्युनिटी,बैंगकॉक
शुभा आशीर्वाद, १०५५, रिज़ रोड, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर ४८२००१,(मध्य प्रदेश)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें