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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

नव गीत

नव गीत :
संजीव 'सलिल'
*
जीवन की जय बोल,
धरा का दर्द तनिक सुन...
तपता सूरज आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी अधिक
हुई है, नेह गल रहा.
हिम्मत तनिक न हार-
नए सपने फिर से बुन...
निशा उषा संध्या को
छलता सुख का चंदा.
हँसता है पर काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने में लीन,
तुझे प्यारी अपनी धुन...
महाकाल के हाथ
जिंदगी यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर, रहे न हावी
कर कुछ सुन-गुन...
*

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