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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

कार्यशाला काव्य प्रश्नोत्तर

कार्यशाला
काव्य प्रश्नोत्तर
संजय:
'आप तो गुरु हो.'
मैं:
'है सराह में, वाह में, आह छिपी- यह देख
चाह कहाँ कितनी रही, करले इसका लेख..'
Sanjay:
'बढ़िया'
मैं:
'गुरु कहना तो ठीक है, कहें न गुरु घंटाल।
वरना भास्कर 'सलिल' में, डूब दिखेगा लाल..'
Sanjay:
'क्या बात है लाजवाब।'
मैं:
'लाजवाब में भी मिला, मुझको छिपा जवाब।
जैसे काँटे छिपाए, सुन्दर लगे गुलाब'.
मैं:
'हद सर करती है हमें, हद को कैसे सर करें,
कोई यह बतलाये?' 'रमे रमा में सब मिले,
राम न चाहे कोई.
'सलिल' राम की चाह में
काम बिसर गयो मोई'.
Sanjay: 'ARE WAAAAHHHHH'
मैं:
राम नाम की चाह में, चाह राम की नांय.
काम राम की आड़ में, संतों को भटकाय..
*

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