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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला

नियति रखे क्या; क्या पता, बनें नहीं अवरोध 
जो दे देने दें उसे, रहिए आप अबोध 
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माँगे तो आते नहीं , होकर बाध्य विचार
मन को रखिए मुक्त तो, आते पा आधार
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सोशल माध्यम में रहें, नहीं हमेशा व्यस्त 
आते नहीं विचार यदि, आप रहें संत्रस्त 
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एक भूमिका ख़त्म कर, साफ़ कीजिए स्लेट 
तभी दूसरी लिख सकें,समय न करता वेट 
*
रूचि है लोगों में मगर, प्रोत्साहन दें नित्य
आप करें खुद तो नहीं, मिटे कला के कृत्य 
*
विश्व संस्कृति के लगें, मेले हो आनंद 
जीवन को हम कला से, समझें गाकर छंद
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भ्रमर करे गुंजार मिल, करें रश्मि में स्नान 
मन में खिलते सुमन शत, सलिल प्रवाहित भान 
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हैं विराट हम अनुभूति से, हुए ईश में लीन 
अचल रहें सुन सकेंगे, प्रभु की चुप रह बीन 
*
२०-४-२०२० 
   

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