कार्यशाला- दोहा / रोला/ कुण्डलिया
मन का डूबा डूबता , बोझ अचिन्त्य विचार ।
चिन्तन का श्रृंगार ही , देता इसे उबार ॥ -शंकर ठाकुर चन्द्रविन्दु देता इसे उबार, राग-वैराग साथ मिल। तन सलिला में कमल, मनस का जब जाता खिल।। चंद्रबिंदु शिव भाल, सोहता सलिल-धार बन। उन्मन भी हो शांत, लगे जब शिव-पग में मन।। -संजीव वर्मा 'सलिल'
***
५.१०.२०१८
मन का डूबा डूबता , बोझ अचिन्त्य विचार ।
चिन्तन का श्रृंगार ही , देता इसे उबार ॥ -शंकर ठाकुर चन्द्रविन्दु देता इसे उबार, राग-वैराग साथ मिल। तन सलिला में कमल, मनस का जब जाता खिल।। चंद्रबिंदु शिव भाल, सोहता सलिल-धार बन। उन्मन भी हो शांत, लगे जब शिव-पग में मन।। -संजीव वर्मा 'सलिल'
***
५.१०.२०१८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें