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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

doha salila

दोहा सलिला
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गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश। 
पैर जमा कर धरा पर, नित्य छुए आकाश।।
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संगीता हर श्वास थी, परिणीता हर आस। 
'सलिल' जिंदगी जिंदगी, तभी हुआ आभास।।
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श्वास-श्वास हो प्रदीपा, आस-आस हो दीप। 
जीवन-सागर से चुनें, जूझ सफलता-सीप।।

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