दोहा सलिला
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गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश।
पैर जमा कर धरा पर, नित्य छुए आकाश।।
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संगीता हर श्वास थी, परिणीता हर आस।
'सलिल' जिंदगी जिंदगी, तभी हुआ आभास।।
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श्वास-श्वास हो प्रदीपा, आस-आस हो दीप।
जीवन-सागर से चुनें, जूझ सफलता-सीप।।
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गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश।
पैर जमा कर धरा पर, नित्य छुए आकाश।।
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संगीता हर श्वास थी, परिणीता हर आस।
'सलिल' जिंदगी जिंदगी, तभी हुआ आभास।।
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श्वास-श्वास हो प्रदीपा, आस-आस हो दीप।
जीवन-सागर से चुनें, जूझ सफलता-सीप।।
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