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गुरुवार, 4 अक्तूबर 2018

doha salila

दोहा सलिला
मिली न मिलकर भी कभी, कहाँ छिपी तकदीर
जीवन बीता जा रहा, कब तक धारूँ धीर?
*
गुरु गुड़ चेला शर्करा, तोड़ मोह के पाश
पैर जमकर धरा पर, छुए नित्य आकाश
*
ऐसा भाव अभाव का, करा रहा आभास
पूनम से भी हो रहा अमावसी अहसास
*

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