सत-शिव-सुंदर सृजन-पथ,
काव्य-दीप शत बाल।
जगमोहन जग मोहकर,
खुद ही बने मिसाल।
*
आँसू बहे न एक,
चंचरीक की याद कर।
काव्य-सृजन कर नेक,
रसानंद का स्वाद चख।।
राम-राम कर राम से,
न रख काम से काम।
निज मर्यादा मानिए,
तब प्रसन्न हों राम।।
बिटिया-नारी सिया,
होती जीवन सहचरी।
सुख-दुख में रह साथ,
बनतीं मनु की प्रेरणा।।
चंचरीक ने सीख दी,
लेखन किया कमाल।
जगमोहन जग-मोहकर,
खुद ही बने मिसाल।।
*
श्याम-चरित से सीख,
करना युग-निर्माण है।
जो जीवन निष्प्राण,
उसमें फूँको प्राण मिल।।
काम करो निष्काम रह,
कदम-कदम बढ़ नित्य।
मंजिल खुद मस्तक-तिलक
करे याद रख कृत्य।।
उस नटवर से सीख,
रास रचाना-भुलाना।
अन्यायी से जूझकर,
पाठ न्याय का पढ़ाना।।
जैसी बहे बयार जब,
ले खुद को तू ढाल।।
जगमोहन जग-मोहकर,
खुद ही बने मिसाल।।
*
कल्कि चरित से सीख,
तू न भुला निज धर्म दे।
हरदम रखना याद,
कर्म धर्म का मर्म है ।।
युग-परिवर्तन अटल है,
पर न भुला गंतव्य।
सबका सबसे हो भला,
साध्य यही मंतव्य।।
कण-कण में भगवान,
कंकर में शंकर बसे।
जड़-चेतन में राम,
मान बरत इंसान तू।।
काव्य-दीप संजीव तम
हर लेता नित बाल।
जगमोहन जग-मोहकर,
खुद ही बने मिसाल।।
***
संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
४०१ विजय अपार्टमेंट,
नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१
चलभाष: ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४
ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें