आँसू बहे न एक,
चंचरीक को याद कर।
मिले प्रेरणा नेक,
प्रभु से नित फरियाद कर।।
*
जगमोहन को मोह जग,
सका नहीं थक-हार।
नतमस्तक हो देखता,
रहा भक्ति का ज्वार।।
प्रभु की कृपा अहैतुकी,
पाई सतत अनंत।
साक्षी धरती ही नहीं,
रवि-शशि दिशा-दिगंत।।
श्वास-श्वास हरि-नाम जप,
रचा अमर साहित्य।
भाव बिंब रस छंदमय,
बन अक्षर आदित्य।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें