कार्य शाला- दोहा / रोला / कुण्डलिया
*
खिलना झड़ना बिखरना जीवन क्रम है खास।
कविता ही कहती नहीं, कहते सब इतिहास।। -पं. गिरिमोहन गुरु
कहता युग-इतिहास, न 'गुरु' होता हर कोई।
वही काटता फसल, समय पर जिसने बोई।।
'सलिल' करे 'संजीव', न आधे मन से मिलना।
बनो नर्मदा लहर, पत्थरों पर भी खिलना।। - संजीव वर्मा 'सलिल'
*
संदेहों की देह में, जब से उगे बबूल।
खिल पाते तब से नहीं, विश्वासों के फूल।। - पं.गिरिमोहन गुरु
विश्वासों के फूल,'सलिल' बिन मुरझा जाते।
नेह-नर्मदा मिले, शिलाओं पर मुस्काते।।
समय साक्ष्य दे उमर, नहीं घटती गेहों की।
लिखे कहानी नई, फसल मिटती देहों की।। - संजीव वर्मा 'सलिल'
*
......पं. गिरिमोहन गुरु
*
खिलना झड़ना बिखरना जीवन क्रम है खास।
कविता ही कहती नहीं, कहते सब इतिहास।। -पं. गिरिमोहन गुरु
कहता युग-इतिहास, न 'गुरु' होता हर कोई।
वही काटता फसल, समय पर जिसने बोई।।
'सलिल' करे 'संजीव', न आधे मन से मिलना।
बनो नर्मदा लहर, पत्थरों पर भी खिलना।। - संजीव वर्मा 'सलिल'
*
संदेहों की देह में, जब से उगे बबूल।
खिल पाते तब से नहीं, विश्वासों के फूल।। - पं.गिरिमोहन गुरु
विश्वासों के फूल,'सलिल' बिन मुरझा जाते।
नेह-नर्मदा मिले, शिलाओं पर मुस्काते।।
समय साक्ष्य दे उमर, नहीं घटती गेहों की।
लिखे कहानी नई, फसल मिटती देहों की।। - संजीव वर्मा 'सलिल'
*
......पं. गिरिमोहन गुरु
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें