कार्यशाला- दोहा / रोला / कुण्डलिया
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मन डूबा ही जा रहा, भावों भरा अपार।
बोझ तले है दब गया, दुनिया है व्यापार।। -शशि त्यागी
दुनिया है व्यापार, न क्या ईश्वर सौदागर?
भटकाता है जनम-जनम क्यों कर यायावर।।
घाट न घर का रहे जीव, भटके हो उन्मन।
भाव भरा संसार, जा रहा है डूबा मन।। -संजीव वर्मा 'सलिल'
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