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मंगलवार, 30 अक्तूबर 2018

गीत

संजीव वर्मा 'सलिल' ४०१ विजय अपार्टमेंट
संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
चेयरमैन इंडियन जिओटेक्निकल सोसायटी salilsanjiv@gmail.com
सभापति अभियान ७९९९५५९६१८ / ९४२५१८३२४४

गीत
सत्य-शिव-सुंदर के शाश्वत गान सी।
बह रही है नर्मदावत मानसी।।
*
आँख में सपने,
करे साकार सब।
कोशिशें लेने लगीं
आकार सब।
जूझ कर दे विघ्न को
नित मात अब-
लक्ष्य आ करने लगें
मनुहार अब।
साधना-अभ्यर्थना के गान भी-
रच रही, हँस गा रही है मानसी।।
*
ठिठक, रुक-झुक, फिसल,
गिर-उठ बढ़ चली।
पग धरा-धर, नभ छुए
लगती भली।।
मधुर कलरव, मृदुल
कलकल, नाद सी।।
वाक्-लिपि-सुर, नृत्य-
अंकन, ताल सी।।
उषा-दुपहर-साँझ-रजनी चाँदनी।
संयमित गति-यति, विलय लय भान सी।।
*
रमा-शारद-शक्ति,
भक्ति विरक्ति भी।
सृजन पथ वर कर
सहज आसक्ति भी।
कर रही कर्तव्य,
पा अधिकार यह।
मोह-ममता-स्नेह का
स्वीकार यह।
कभी गीता, कभी सीता मानवी-
श्रुति-स्मृति है, यह ऋचा की जान सी।।
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संजीव वर्मा 'सलिल',
३०-१०-२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com
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