ॐ
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
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छंद चरण बन वेद में, दें प्रवेश विधि कंत।।
दोहा कहता द्वैत बिन, सृष्टि-सृजन से हीन।
द्वैत वरे अद्वैत जब, तब हो ब्रम्ह अदीन।।
नयन नासिका-छिद्र रद, अधर भौंह पग हाथ।
करें नहीं मतभेद मिल, रहते हरदम साथ।।
नाद-ताल, अपरा-परा, ऋद्धि-सिद्धि रवि-चंद।
भोर-साँझ, दिन-रात हो, पूरक दें आनंद।।
भू-नभ, तिमिर-उजास सँग, रहते दिशा-दिगंत।
बुद्धि-ज्ञान अनुभव बनें, हो अनुभूति अनंत।।
व्यक्त करें अनुभूति को, अक्षर-शब्द न भूल।
भाषा वाहक कथ्य की, लिपि अंकन का मूल।।
हिंदी सह लिपि नागरी, मनहर सुमन-सुवास।
गति-यति, लय-रस, बिंब-छवि मात्रा-वर्ण तपास।।
दृश्य-अदृश्य कहें कवि, कर कविता कमनीय।
चित्र गुप्त साकार हो, मानस में मननीय।।
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छंद (meta)- शब्द ('चद' धातु) अर्थात 'खुश करना'। अक्षर-संख्या, मात्रा-संख्या, गण-व्यवस्था, गति-यति (विराम) आदि पर आधारित अर्थात निश्चित लय, पंक्ति-संख्या, चरण, वर्ण, मात्रा, गति-यति, वर्ण, पदांत-तुकांत आदि से नियोजित पद्य (Verse, Poetry) को छंद कहते हैं।
छंद के अंग- १. वर्ण (अक्षर), २. मात्रा (लघु १, गुरु२), १. पाद (पद, पंक्ति) तथा २. चरण (पंक्त्यांश), ५. मात्रा (लघु १, गुरु२), ३. गण (त्रिवर्णिक ध्वनि खंड),
१. स्वर, वर्ण (अक्षर)- बोली जानेवाली सबसे छोटी ध्वनि को स्वर कहते हैं। स्वर दो प्रकार के होते हैं। कम समय में बोली जाने ले स्वर को 'लघु' तथा अधिक समय में उच्चारित ये जानेवाले स्वर को 'गुरु' कहा जाता है। लघु गुरु स्वरों को विशिष्ट आकृति द्वारा अंकित करने पर उन्हें वर्ण (अक्षर) कहते हैं चूँकि उनका क्षरण या विभाजन नहीं किया जा सकता। क्रम विशेष में अंकित की गयी वर्ण-सारणी को 'लिपि' कहा जाता है।
२. मात्रा (लघु १, गुरु२)- हर वर्ण को विशिष्ट आकृति द्वारा पटल पर अंकित किया जाता है। समस्त संकेतों को अंकित करने की विधा को 'लिपि' कहा जाता है। वर्णों की क्रम विशेष द्वारा बनाई गयी सूची को 'वर्णमाला' कहते हैं। वर्णों को
१. पाद- छंद में प्रयुक्त पंक्ति संख्या। इसे 'पद' भी कहते हैं किन्तु 'पद' का अर्थ पूरी पद्य रचना से भी होता है जैसे सूर के पद अर्थात सूर द्वारा की गयी काव्य रचना।
२. चरण- पद्य में प्रयुक्त पंक्ति में विराम स्थल निश्चित हो तो उसके पहले या बादवाले भाग को चरण कहा जाता है। एक पंक्ति में दो चरण होने पर आरंभ वाला भाग विषम चरण तथा अंत वाला भाग सम चरण कहा जाता है। दो से अधिक अर्थात ३ या ४ चरण होने पर उन्हें क्रम संख्या अनुसार पहला चरण, दूसरा चरण, तीसरा चरण आदि कहा जाता है।
३. गण- हिंदी छंद-शास्त्र में ३-३ वर्णों के आधार पर ३ से ६ मात्रा के
मात्रा (वजन, भार)- किसी वर्ण को बोलने में लगे समय को 'उच्चार' कहते हैं, कम समय को ह्रस्व (लघु, छोटा) तथा अधिक समय को दीर्घ (बड़ा । लिखते समय इसे कम या
: मात्रा गणना नियम :
१. ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है। २. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अपेक्षाकृत अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। जैसे ध्वनि = १ +१ =२, क्षमा १+२, गृह = ११ = २, प्रिया = १२ =३ आदि।
मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। कोई शंका होने पर संपर्क करें। ९४२५१८३२४४ / ७९९९५५९६१८, salil.sanjiv@gmail.co
४. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहलेवाले अक्षर के साथ गिनें। जैसे- वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि।
५. रेफ को आधे अक्षर की तरह उससे पहले वाले वर्ण के साथ गिनें, पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई प्रभाव नहीं होता। बर्रैया २+२+२, गर्राहट २+२+१+१ = ६, चर्रा २+२ = ४, अर्कान २+२+१ = ५ आदि।
६. अनुस्वर (बिंदी) जिस अक्षर पर हो वह लघु हो तो गुरु हो जाता है। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४, प्रियंवदा १+२+१+२ = ६, आदि।
७. अपवाद स्वरूप उच्चारण के अनुसार कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५ आदि।
८. दोहा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं कथ्य व लय। कथ्य को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय' में अन्तर्निहित उच्चार में लगी समयावधि की गणना के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है। रस, अलंकार, बिंब, प्रतीक, मिथक आदि लालित्यवर्धन हेतु है। कथ्य, लय व विधान से न्याय जरूरी है।
९. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २ आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
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: दोहा लेखन विधान :
१. दोहा अर्ध सममात्रिक छंद है।
२. दोहा में दो पंक्तियाँ (पद) होती हैं। हर पद में दो चरण होते हैं।
३. दोहा मुक्तक छंद है। कथ्य (जो बात कहना चाहें वह) एक दोहे में पूर्ण हो जाना चाहिए। सामान्यत: प्रथम चरण में कथ्य का उद्भव, द्वितीय-तृतीय चरण में विस्तार तथा चतुर्थ चरण में उत्कर्ष या समाहार होता है।
४. विषम (पहला, तीसरा) चरण में १३-१३ तथा सम (दूसरा, चौथा) चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।
५. विषम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में कल-बाँट ३ ३ २ ३ २ तथा सम कला से आरंभ दोहे के विषम चरण में कल बाँट ४ ४ ३ २ तथा सम चरणों की कल-बाँट ४ ४.३ या ३३ ३ २ ३ होने पर लय सहजता से सधती है। अन्य कल बाँट वर्जित नहीं है।
६. परम्परानुसार तेरह मात्रिक पहले तथा तीसरे चरण के आरंभ में एक शब्द में जगण (लघु गुरु लघु) वर्जित होता है। पदारंभ में 'इसीलिए' वर्जित, 'इसी लिए' मान्य।
७. विषम चरणांत में 'सरन' तथा सम चरणांत में 'जात' से लय साधना सरल होता है है किंतु अन्य गण-संयोग वर्जित नहीं हैं।
८. दोहे में संयोजक शब्दों और, तथा, एवं आदि का प्रयोग यथासंभव न करें। औ', ना, इक वर्जित, अरु, न, एक सही।
९. हिंदी व्याकरण तथा मात्रा गणना नियमों का पालन करें। दोहा में वर्णिक छंद की तरह लघु को गुरु या गुरु को लघु पढ़ने की छूट नहीं होती।
१०. आधुनिक हिंदी / खड़ी बोली में खाय, मुस्काय, आत, भात, आब, जाब, डारि, मुस्कानि, हओ, भओ जैसे देशज / आंचलिक क्रिया-रूपों का उपयोग न करें किंतु अन्य उपयुक्त आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। बोलियों में दोहा रचना करते समय उस बोली का यथासंभव शुद्ध-सरल रूप व्यवहार में लाएँ।
११. दोहा में विराम चिन्हों का प्रयोग यथास्थान अवश्य करें।
१२. श्रेष्ठ दोहे में अर्थवत्ता, लाक्षणिकता, संक्षिप्तता, मार्मिकता, आलंकारिकता, स्पष्टता, पूर्णता, सरलता व सरसता हो।
१३. दोहे में अनावश्यक शब्द का प्रयोग न हो। शब्द-चयन ऐसा हो जिसके निकालने या बदलने पर दोहा अधूरा सा लगे।
१४. अ, इ, उ, ऋ तथा इन मात्राओं से युक्त वर्ण की एक मात्रा गिनें। उदाहरण- अब = ११ = २, इस = ११ = २, उधर = १११ = ३, ऋषि = ११= २, उऋण १११ = ३ आदि।४. शेष वर्णों की दो-दो मात्रा गिनें। जैसे- आम = २१ = ३, काकी = २२ = ४, फूले २२ = ४, कैकेई = २२२ = ६ आदि।
१५. दोहे में कारक (ने, को, से, के लिए, का, के, की, में, पर आदि) का प्रयोग कम से कम हो।
१६. दोहा सम तुकांती छंद है। सम चरण के अंत में सामान्यत: वार्णिक समान तुक होना बेहतर है। संगीत की बंदिशों, श्लोकों आदि में मात्रिक समान्तता भी रखी जाती रही है।
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- : दोहा शतक मंजूषा : -
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर के तत्वावधान में समकालिक १५-१५ दोहाकारों के १००-१०० दोहे, एक पृष्ठीय टिप्पणी, एक पृष्ठ पर चित्र-परिचय व उपयोगी शोध सामग्री सहित दस-दस पृष्ठों पर संकलित-संपादित कर संकलन प्रकाशित किए जा रहे हैं। अब तक दोहा पर केन्द्रित इतना व्यवस्थित-विराट अनुष्ठान (४९८० दोहे) पहली बार हुआ है। ये संकलन दोहा के अजायबघर नहीं, दोहा शतक क्यारी, संग्रह उद्यान तथा उद्यान और संकलन-अनुष्ठान खेत की तरह हैं। अब तक ३ भाग दोहा-दोहा नर्मदा २५०/-, दोहा सलिला निर्मला २५०/- व दोहा दिव्या दिनेश ३००/- प्रकाशित किये जा चुके हैं। तीनों भाग लेने पर ५०% मूल्य पर पैकिंग-डाक व्यय की छूट सहित प्राप्त है। भाग ४ हेतु सामग्री संकलित की जा रही है। संकलन प्रकाशित होने पर समें सम्मिलित हर सहभागी को ११ प्रतियाँ निशुल्क भेंट की / भेजी जाएँगी।
१७. पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई अंतर नहीं होता। दोहा में लय का महत्वपूर्ण स्थान है। लय के बिना दोहा नहीं कहा जा सकता। लयभिन्नता स्वीकार्य है, लयभंगता नहीं।
सहभागिता के इच्छुक दोहाकारों से १२० दोहे ( १०० चयनित दोहे प्रकाशित होंगे), चित्र, संक्षिप्त परिचय (नाम, जन्म तिथि व स्थान, माता-पिता, जीवन-साथी व काव्य गुरु के नाम, शिक्षा, लेखन विधा, प्रकाशित कृतियाँ, विशेष उपलब्धि, पूरा पता, चलभाष, ईमेल आदि) आमंत्रित हैं। दोहे स्वीकार्य होने पर हर सहभागी ३०००/- अग्रिम सहयोग राशि देना बैंक, राइट टाउन शाखा जबलपुर IFAC: BKDN ०८११११९ में संजीव वर्मा के खाता क्रमांक १११९१०००२२४७ में अथवा नकद जमा करें। संपादन वरिष्ठ दोहाकार आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' तथा डॉ. प्रो. साधना वर्मा द्वारा किया जा रहा है। आवश्यकतानुसार संपादकीय संशोधन स्वीकार्य हों तो ही आप सादर आमंत्रित हैं। दोहे unicode में टंकित कर ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com पर चित्र-परिचय सहित भेजें, चलभाष ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४ । भारतीय बोलियों / अहिंदी भाषाओँ के दोहे देवनागरी लिपि में आंचलिक शब्दों के अर्थ पाद टिप्पणी में देते हुए भेज सकते हैं।
दोहा शतक मञ्जूषा १ 'दोहा-दोहा नर्मदा' २५०/- : सहभागी सर्वश्री/सुश्री/श्रीमती १. आभा सक्सेना 'दूनवी' देहरादून, २. कालिपद प्रसाद हैदराबाद, ३. डॉ. गोपालकृष्ण भट्ट 'आकुल' कोटा, ४. चंद्रकांता अग्निहोत्री पंचकूला, ५.छगनलाल गर्ग 'विज्ञ' सिरोही, ६. छाया सक्सेना 'प्रभु' जबलपुर, ७. त्रिभुवन कौल नई दिल्ली, ८. प्रेमबिहारी मिश्र नई दिल्ली, ९. मिथिलेश बड़गैया जबलपुर, १०. रामेश्वरप्रसाद सारस्वत सहारनपुर, ११. विजय बागरी कटनी, १२. विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा, १३. श्रीधर प्रसाद द्विवेदी डाल्टनगंज, १४. श्यामल सिन्हा गुरु ग्राम, १५. सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' जबलपुर।
दोहा शतक मञ्जूषा २ 'दोहा-सलिला निर्मला' २५०/-, सहभागी सर्वश्री/सुश्री/श्रीमती १. अखिलेश खरे 'अखिल' कटनी, २. अरुण शर्मा भिवंडी, ३. इंजी. उदयभानु तिवारी 'मधुकर' जबलपुर, ४. ॐ प्रकाश शुक्ल नई दिल्ली, ५. जयप्रकाश श्रीवास्तव जबलपुर, ६. नीता सैनी नई दिल्ली, ७. डॉ. नीलमणि दुबे शहडोल, ८. बसंत शर्मा जबलपुर, ९. राम कुमार चतुर्वेदी सिवनी, १०. रीता सिवानी नोएडा, ११. शुचि भवि भिलाई, १२. प्रो. शोभित वर्मा जबलपुर, १३. सरस्वती कुमारी ईटानगर, १४. हरि फैजाबादी लखनऊ, १५. हिमकर श्याम रांची।
दोहा शतक मञ्जूषा ३ 'दोहा दीप्त दिनेश' ३००/-, सहभागी सर्वश्री / सुश्री / श्रीमती १. अनिल कुमार मिश्र उमरिया, २. इंजी. अरुण अर्णव खरे भोपाल, ३. अविनाश ब्योहार जबलपुर, ४. इंजी. इंद्र बहादुर श्रीवास्तव जबलपुर, ५. कांति शुक्ल 'उर्मि' भोपाल, ६. इंजी. गोपालकृष्ण चौरसिया 'मधुर' जबलपुर, ७. डॉ. चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध' जबलपुर, ८. डॉ. जगन्नाथ प्रसाद बघेल मुंबई, ९. मनोज कुमार शुक्ल जबलपुर, १०. महातम मिश्र अहमदाबाद, ११.राजकुमार महोबिया उमरिया, १२. रामलखन सिंह चौहान उमरिया, १३. प्रो. विश्वंभर शुक्ल लखनऊ, १४. शशि त्यागी अमरोहा, १५. संतोष नेमा जबलपुर।
दोहा शतक मञ्जूषा ४- संभावित दोहाकार: सर्वश्री / सुश्री / श्रीमती लता यादव गुरुग्राम, सुमन श्रीवास्तव लखनऊ., डॉ. रमन चेन्नई, शेख शहजाद उस्मानी, मिली भटनागर मुजफ्फरपुर, शुभदा बाजपेई. रमेश विनोदी कपूरथला, सविता तिवारी मारीशस, डॉ. वसुंधरा उपाध्याय पिथोरागढ़, पूजा अनिल स्पेन आदि।
1. छंद में मात्रा का अर्थ :- वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे ही मात्रा कहा जाता है। अथार्त वर्ण को बोलने 5. मंदाक्रांता छंद :- इसके हर चरण में 17 वर्ण होते हैं। एक भगण , एक नगण , दो तगण , और दो गुरु होते हैं। 5, 6 तथा 7 वें वर्ण पर विराम होता है।
जैसे :- “कोई क्लांता पथिक ललना चेतना शून्य होक़े,
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।”
तेरे जैसे पवन में , सर्वथा शान्ति पावे।
तो तू हो के सदय मन, जा उसे शान्ति देना,
ले के गोदी सलिल उसका, प्रेम से तू सुखाना।।”
6. इन्द्रव्रजा छंद :- इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण , दो जगण और बाद में 2 गुरु होते हैं।
जैसे :- “माता यशोदा हरि को जगावै।
प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
गोविन्द, दामोदर माधवेति।।”
प्यारे उठो मोहन नैन खोलो।
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं।
गोविन्द, दामोदर माधवेति।।”
7. उपेन्द्रव्रजा छंद :- इसके प्रत्येक चरण में 11 वर्ण , 1 नगण , 1 तगण , 1 जगण और बाद में 2 गुरु होता हैं।
जैसे :- “पखारते हैं पद पद्म कोई,
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।”
चढ़ा रहे हैं फल -पुष्प कोई।
करा रहे हैं पय-पान कोई
उतारते श्रीधर आरती हैं।।”
8. अरिल्ल छंद :- हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु या यगण होना चाहिए।
जैसे :- “मन में विचार इस विधि आया।
कैसी है यह प्रभुवर माया।
क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।
कैसी है यह प्रभुवर माया।
क्यों आगे खड़ी है विषम बाधा।
मैं जपता रहा, कृष्ण-राधा।।
9. लावनी छंद :- इसके हर चरण में 22 मात्राएँ और चरण के अंत में गुरु होते हैं।
जैसे :- “धरती के उर पर जली अनेक होली।
पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।”
पर रंगों से भी जग ने फिर नहलाया।
मेरे अंतर की रही धधकती ज्वाला।
मेरे आँसू ने ही मुझको बहलाया।।”
10. राधिका छंद :- इसके हर चरण में 22 मात्राएँ होती हैं। 13 और 9 पर विराम होता है।
जैसे :- “बैठी है वसन मलीन पहिन एक बाला।
बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।”
बुरहन पत्रों के बीच कमल की माला।
उस मलिन वसन म, अंग-प्रभा दमकीली।
ज्यों धूसर नभ में चंद्रप्रभा चमकीली।।”
11. त्रोटक छंद :- इसके हर चरण में 12 मात्रा और 4 सगण होते हैं।
जैसे :- “शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।”
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।”
12. भुजंगी छंद :- हर चरण में 11 वर्ण , तीन सगण , एक लघु और एक गुरु होता है।
जैसे :- “शशि से सखियाँ विनती करती,
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।”
टुक मंगल हो विनती करतीं।
हरि के पद-पंकज देखन दै
पदि मोटक माहिं निहारन दै।।”
13. वियोगिनी छंद :- इसके सम चरण में 11-11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते हैं। विषम चरणों में दो सगण , एक जगण , एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते हैं।
जैसे :- “विधि ना कृपया प्रबोधिता,
सहसा मानिनि सुख से सदा
करती रहती सदैव ही
करुण की मद-मय साधना।।”
सहसा मानिनि सुख से सदा
करती रहती सदैव ही
करुण की मद-मय साधना।।”
14. वंशस्थ छंद :- इसके हर चरण में 12 वर्ण , एक नगण , एक तगण , एक जगण और एक रगण होते हैं।
जैसे :- “गिरिन्द्र में व्याप्त विलोकनीय थी,
वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।”
वनस्थली मध्य प्रशंसनीय थी
अपूर्व शोभा अवलोकनीय थी
असेत जम्बालिनी कूल जम्बुकीय।।”
15. शिखरिणी छंद :- इसमें 17 वर्ण होते हैं। इसके हर चरण में यगण , मगण , नगण , सगण , भगण , लघु और गुरु होता है।
16. शार्दुल विक्रीडित छंद :- इसमें 19 वर्ण होते हैं। 12 , 7 वर्णों पर विराम होता है। हर चरण में मगण , सगण , जगण , सगण , तगण , और बाद में एक गुरु होता है।
17. मत्तगयंग छंद :- इसमें 23 वर्ण होते हैं। हर चरण में सात सगण और दो गुरु होते हैं।
काव्य में छंद का महत्व :-
छंद से ह्रदय का संबंध बोध होता है। छंद से मानवीय भावनाएँ झंकृत होती हैं। छंदों में स्थायित्व होता है। छंद के सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
जैसे :- भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।
अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं अथार्त किसी वर्ण के उच्चारण काल की अवधि मात्रा कहलाती है।
2. यति :- पद्य का पाठ करते समय गति को तोडकर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं। सरल शब्दों में छंद का पाठ करते समय जहाँ पर कुछ देर के लिए रुकना पड़ता है उसे यति कहते हैं। इसे विराम और विश्राम भी कहा जाता है।
इनके लिए (,) , (1) , (11) , (?) , (!) चिन्ह निश्चित होते हैं। हर छंद में बीच में रुकने के लिए कुछ स्थान निश्चित होते हैं इसी रुकने को विराम या यति कहा जाता है। यति के ठीक न रहने से छंद में यतिभंग दोष आता है।
3. गति :- पद्य के पथ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं। अथार्त किसी छंद को पढ़ते समय जब एक प्रवाह का अनुभव होता है उसे गति या लय कहा जाता है। हर छंद में विशेष प्रकार की संगीतात्मक लय होती है जिसे गति कहते हैं। इसके ठीक न रहने पर गतिभंग दोष हो जाता है।
4. तुक :- समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को ही तुक कहा जाता है। छंद में पदांत के अक्षरों की समानता तुक कहलाती है।
तुक के भेद :-
1. तुकांत कविता
2. अतुकांत कविता
2. अतुकांत कविता
1. तुकांत कविता :- जब चरण के अंत में वर्णों की आवृति होती है उसे तुकांत कविता कहते हैं। पद्य प्राय: तुकांत होते हैं।
जैसे :- ” हमको बहुत ई भाती हिंदी।
हमको बहुत है प्यारी हिंदी।”
हमको बहुत है प्यारी हिंदी।”
जैसे :- “काव्य सर्जक हूँ
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।”
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।”
5. गण :- मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिए तीन वर्णों के समूह को गण मान लिया जाता है। वर्णिक छंदों की गणना गण के क्रमानुसार की जाती है। तीन वर्णों का एक गण होता है। गणों की संख्या आठ होती है।
यगण , तगण , लगण , रगण , जगण , भगण , नगण , सगण आदि। गण को जानने के लिए पहले उस गण के पहले तीन अक्षर को लेकर आगे के दो अक्षरों को मिलाकर वह गण बन जाता है।
यह भी पढ़ें : Upsarg In Hindi , Adverb In Hindi
छंद के प्रकार :-
1. मात्रिक छंद
2. वर्णिक छंद
3. वर्णिक वृत छंद
4. मुक्त छंद
2. वर्णिक छंद
3. वर्णिक वृत छंद
4. मुक्त छंद
1. मात्रिक छंद :- मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अथार्त जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या , लघु -गुरु , यति -गति के आधार पर पद रचना की जाती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं।
जैसे :- ” बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।”
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।”
मात्रिक छंद के भेद :-
1. सममात्रिक छंद
2. अर्धमात्रिक छंद
3. विषममात्रिक छंद
2. अर्धमात्रिक छंद
3. विषममात्रिक छंद
1. सममात्रिक छंद :- जहाँ पर छंद में सभी चरण समान होते हैं उसे सममात्रिक छंद कहते हैं।
जैसे :- “मुझे नहीं ज्ञात कि मैं कहाँ हूँ
प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।”
प्रभो! यहाँ हूँ अथवा वहाँ हूँ।”
2. अर्धमात्रिक छंद :- जिसमें पहला और तीसरा चरण एक समान होता है तथा दूसरा और चौथा चरण उनसे अलग होते हैं लेकिन आपस में एक जैसे होते हैं उसे अर्धमात्रिक छंद कहते हैं।
3. विषय मात्रिक छंद :- जहाँ चरणों में दो चरण अधिक समान न हों उसे विषम मात्रिक छंद कहते हैं। ऐसे छंद प्रचलन में कम होते हैं।
2. वर्णिक छंद :- जिन छंदों की रचना को वर्णों की गणना और क्रम के आधार पर किया जाता है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।
वृतों की तरह इनमे गुरु और लघु का कर्म निश्चित नहीं होता है बस वर्ण संख्या निश्चित होती है। ये वर्णों की गणना पर आधारित होते हैं।जिनमे वर्णों की संख्या , क्रम , गणविधान , लघु-गुरु के आधार पर रचना होती है।
जैसे :- (i) दुर्मिल सवैया।
(ii) ” प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना , का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं , देख के जी सकी हूँ।
वह ह्रदय हमारा , नेत्र तारा कहाँ है।
(ii) ” प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना , का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं , देख के जी सकी हूँ।
वह ह्रदय हमारा , नेत्र तारा कहाँ है।
जैसे :- मत्तगयन्द सवैया।
4. मुक्त छंद :- मुक्त छंद को आधुनिक युग की देन माना जाता है। जिन छंदों में वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता उन्हें मुक्तक छंद कहते हैं अथार्त हिंदी में स्वतंत्र रूप से आजकल लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। चरणों की अनियमित , असमान , स्वछन्द गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते हैं। इनमे न वर्णों की और न ही मात्राओं की गिनती होती है।
जैसे :- ” वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
चल रहा लकुटिया टेक ,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता। ”
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
चल रहा लकुटिया टेक ,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता। ”
प्रमुख मात्रिक छंद :-
1. दोहा छंद
2. सोरठा छंद
3. रोला छंद
4. गीतिका छंद
5. हरिगीतिका छंद
6. उल्लाला छंद
7. चौपाई छंद
8. बरवै (विषम) छंद
9. छप्पय छंद
10. कुंडलियाँ छंद
11. दिगपाल छंद
12. आल्हा या वीर छंद
13. सार छंद
14. तांटक छंद
15. रूपमाला छंद
16. त्रिभंगी छंद
2. सोरठा छंद
3. रोला छंद
4. गीतिका छंद
5. हरिगीतिका छंद
6. उल्लाला छंद
7. चौपाई छंद
8. बरवै (विषम) छंद
9. छप्पय छंद
10. कुंडलियाँ छंद
11. दिगपाल छंद
12. आल्हा या वीर छंद
13. सार छंद
14. तांटक छंद
15. रूपमाला छंद
16. त्रिभंगी छंद
1. दोहा छंद :- यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसमें चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है।
जैसे :- (i) Sll SS Sl S SS Sl lSl
“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
lll Sl llll lS Sll SS Sl
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
lll Sl llll lS Sll SS Sl
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
(ii) तेरो मुरली मन हरो, घर अँगना न सुहाय॥
श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!
रात-दिवस, पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप॥
2. सोरठा छंद :- यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है।तुक प्रथम और तृतीय चरणों में होता है।
जैसे :- (i) lS l SS Sl SS ll lSl Sl
“कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।
S SS S Sl lS lSS S lS
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”
“कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।
S SS S Sl lS lSS S lS
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”
(ii) जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
3. रोला छंद :- यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसे अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं।
जैसे :- (i) SSll llSl lll ll ll Sll S
“नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”
“नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”
(ii) यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
4. गीतिका छंद :- यह मात्रिक छंद होता है। इसके चार चरण होते हैं। हर चरण में 14 और 12 के करण से 26 मात्राएँ होती हैं। अंत में लघु और गुरु होता है।
जैसे :- S SS SlSS Sl llS SlS
“हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।”
“हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बने।
ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।”
5. हरिगीतिका छंद :- यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु गुरु का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है।
जैसे :- SS ll Sll S S S lll SlS llS
“मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”
“मेरे इस जीवन की है तू, सरस साधना कविता।
मेरे तरु की तू कुसुमित , प्रिय कल्पना लतिका।
मधुमय मेरे जीवन की प्रिय,है तू कल कामिनी।
मेरे कुंज कुटीर द्वार की, कोमल चरण-गामिनी।”
6. उल्लाला छंद :- यह मात्रिक छंद होता है। इसके हर चरण में 15 और 13 के क्रम से 28 मात्राएँ होती है।
जैसे :- llS llSl lSl S llSS ll Sl S
“करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”
“करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण-मूर्ति सर्वेश की।”
7. चौपाई छंद :- यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है लेकिन दो गुरु और दो लघु हो सकते हैं। अंत में गुरु वर्ण होने से छंद में रोचकता आती है।
जैसे :- (i) ll ll Sl lll llSS
“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
(ii) बंदउँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥
8. विषम छंद :- इसमें पहले और तीसरे चरण में 12 और दूसरे और चौथे चरण में 7 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अंत में जगण और तगण के आने से मिठास बढती है। यति को प्रत्येक चरण के अंत में रखा जाता है।
जैसे :- “चम्पक हरवा अंग मिलि अधिक सुहाय।
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।।”
जानि परै सिय हियरे, जब कुम्हिलाय।।”
9. छप्पय छंद :- इस छंद में 6 चरण होते हैं। पहले चार चरण रोला छंद के होते हैं और अंत के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। प्रथम चार चरणों में 24 मात्राएँ और बाद के दो चरणों में 26-26 या 28-28 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :- “नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदिया प्रेम-प्रवाह, फूल -तो मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद है, बलिहारी इस वेश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही,सगुण मूर्ति सर्वेश की।।”
10. कुंडलियाँ छंद :- कुंडलियाँ विषम मात्रिक छंद होता है। इसमें 6 चरण होते हैं। शुरू के 2 चरण दोहा और बाद के 4 चरण उल्लाला छंद के होते हैं। इस तरह हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :– (i) “घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध।
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।”
बाहर का बक हंस है, हंस घरेलू गिद्ध
हंस घरेलू गिद्ध , उसे पूछे ना कोई।
जो बाहर का होई, समादर ब्याता सोई।
चित्तवृति यह दूर, कभी न किसी की होगी।
बाहर ही धक्के खायेगा , घर का जोगी।।”
(ii) कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह ‘गिरिधर कविराय’, मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥
(iii) रत्नाकर सबके लिए, होता एक समान।
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
बुद्धिमान मोती चुने, सीप चुने नादान॥
सीप चुने नादान,अज्ञ मूंगे पर मरता।
जिसकी जैसी चाह,इकट्ठा वैसा करता।
‘ठकुरेला’ कविराय, सभी खुश इच्छित पाकर।
हैं मनुष्य के भेद, एक सा है रत्नाकर॥
11. दिगपाल छंद :- इसके हर चरण में 12-12 के विराम से 24 मात्राएँ होती हैं।
जैसे :- “हिमाद्रि तुंग-श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।”
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
अमर्त्य वीर पुत्र तुम, दृढ प्रतिज्ञ सो चलो।
प्रशस्त पुण्य-पंथ है, बढ़े चलो-बढ़े चलो।।”
12. आल्हा या वीर छंद :- इसमें 16 -15 की यति से 31 मात्राएँ होती हैं।
13. सार छंद :- इसे ललित पद भी कहते हैं। सार छंद में 28 मात्राएँ होती हैं। इसमें 16-12 पर यति होती है और बाद में दो गुरु होते हैं।
14. ताटंक छंद :- इसके हर चरण में 16,14 की यति से 30 मात्राएँ होती हैं।
15. रूपमाला छंद :- इसके हर चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 14 और 10 मैट्रन पर विराम होता है। अंत में गुरु लघु होना चाहिए।
16. त्रिभंगी छंद :- यह छंद 32 मात्राओं का होता है। 10,8,8,6 पर यति होती है और अंत में गुरु होता है।
प्रमुख वर्णिक छंद :-
1. सवैया छंद
2. कवित्त छंद
3. द्रुत विलम्बित छंद
4. मालिनी छंद
5. मंद्रक्रांता छंद
6. इंद्र्व्रजा छंद
7. उपेंद्रवज्रा छंद
8. अरिल्ल छंद
9. लावनी छंद
10. राधिका छंद
11. त्रोटक छंद
12. भुजंग छंद
13. वियोगिनी छंद
14. वंशस्थ छंद
15. शिखरिणी छंद
16. शार्दुल विक्रीडित छंद
17. मत्तगयंग छंद
2. कवित्त छंद
3. द्रुत विलम्बित छंद
4. मालिनी छंद
5. मंद्रक्रांता छंद
6. इंद्र्व्रजा छंद
7. उपेंद्रवज्रा छंद
8. अरिल्ल छंद
9. लावनी छंद
10. राधिका छंद
11. त्रोटक छंद
12. भुजंग छंद
13. वियोगिनी छंद
14. वंशस्थ छंद
15. शिखरिणी छंद
16. शार्दुल विक्रीडित छंद
17. मत्तगयंग छंद
1. सवैया छंद :- इसके हर चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं। इसमें एक से अधिक छंद होते हैं। ये अनेक प्रकार के होते हैं और इनके नाम भी अलग -अलग प्रकार के होते हैं। सवैया में एक ही वर्णिक गण को बार-बार आना चाहिए। इनका निर्वाह नहीं होता है।
जैसे :- “लोरी सरासन संकट कौ,
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।”
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।”
2. मन हर , मनहरण , घनाक्षरी , कवित्त छंद :- यह वर्णिक सम छंद होता है। इसके हर चरण में 31से 33 वर्ण होते हैं और अंत में तीन लघु होते हैं। 16, 17 वें वर्ण पर विराम होता है।
जैसे :- “मेरे मन भावन के भावन के ऊधव के आवन की
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।”
सुधि ब्रज गाँवन में पावन जबै लगीं।
कहै रत्नाकर सु ग्वालिन की झौर-झौर
दौरि-दौरि नन्द पौरि,आवन सबै लगीं।
उझकि-उझकि पद-कंजनी के पंजनी पै,
पेखि-पेखि पाती,छाती छोहन सबै लगीं।
हमको लिख्यौ है कहा,हमको लिख्यौ है कहा,
हमको लिख्यौ है कहा,पूछ्न सबै लगी।।”
3. द्रुत विलम्बित छंद :- हर चरण में 12 वर्ण , एक नगण , दो भगण तथा एक सगण होते हैं।
जैसे :- “दिवस का अवसान समीप था,
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।”
गगन था कुछ लोहित हो चला।
तरु शिखा पर थी अब राजती,
कमलिनी कुल-वल्लभ की प्रभा।।”
4. मालिनी छंद :- इस वर्णिक सम वृत छंद में 15 वर्ण होते हैं दो तगण , एक मगण , दो यगण होते हैं। आठ , सात वर्ण एवं विराम होता है।
जैसे :- “प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।”
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।”
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