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बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

kahani- chhoti si bhool -sushil das

कहानी-
छोटी सी भूल
स्व. सुशील दास
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[स्व. सुशील दास म. प्र. लोक निर्माण विभाग में अभियंता तथा म. प्र. डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन के कर्मठ पदाधिकारी थे। वे आजीवन अविवाहित रहे, समर्पित देवी भक्त तथा अपनी माता श्री की हर आज्ञा का पालन करनेवाले पुत्र थे। स्व. दास कुशल कहानीकार भी थे। बांग्लाभाषी होने के कारण भाषिक त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है, यह सत्य जानकर वे अपनी कहानियों को छिपाकर रखते थे। स्व. दास के अनुजवत अभिन्न मित्र इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित यह कहानी 'कम में अधिक कहने की कला' दर्शाती है। श्री सलिल के सौजन्य से इसे प्रकाशित किया जा रहा है। स्व. दास का कहानी संग्रह समाज द्वारा प्रकाशित किया जा सके तो यह नई पीढ़ी के लिए उपयोगी सौगात होगी- सं. ]
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भूल किससे नहीं होती किन्तु बहुत ही कम व्यक्ति अपनी भूल को स्वीकार कर सुधारने की हिम्मत कर पाते हैं। कभी-कभी मनुष्य एक भूल सुधारने के नाम पर अन्य अनेक भूलें कर बैठता है, फिर उसके पश्चाताप में शेष जिन्दगी विषमय कर लेता है। यह विषमय जिन्दगी, उसके मन को गलित कोढ़ की तरह दुर्गंधमय कर लोकालय से दूर रहने के लिए मजबूर कर देती है। ऐसा ही इस कहानी के नायक गोपाल बाबू के साथ हुआ। वे आज भी जन-समाज से दूर, निर्जन स्थान पर साधना का नाम लेकर प्रस्तर मूर्ति के सामने अपनी अतीत की भूल के लिए पश्चाताप तथा आत्म विश्लेषण करते हैं कि इस जिंदगी के लिए जिम्मेदार है उनकी वही छोटी सी भूल।
गोपाल बाबू का एकांतवास, प्रस्तर मूर्तिके सामने निश्चल बैठे रहना, अश्रु प्लावित मुख मंडल, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन भले ही साधारण मनुष्य के मन पर उनकी धार्मिकता की छाप छोड़ते हैं परन्तु मैं उनका बाल-साथी हूँ, जानता हूँ कि जिंदगी की एक छोटी सी भूल के कारण आज वे इस स्थिति को प्राप्त हुए हैं। धार्मिक के स्थान पर मैं उन्हें एक पश्चातापी व्यक्ति के रूप में ज्यादा मानता हूँ। कभी-कभी उनकी इस बेवकूफी के लिए मन ही मन उन्हें कोसता भी हूँ। जो व्यक्ति समाज से ताल-मेल रखकर चलते हैं, वे हर समय समाज द्वारा ठुकराए जाते हैं। आज की समाज-व्यवस्था को देखकर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि कानून का पालन करनेवाले एवं आदर्शवादी के लिए जी पाना भी दुश्वार है।
जब गोपाल बाबू कोलेज में पढ़ते थे तो वे लज्जालु स्वभाव के व्यक्ति थे और सबके सामने अपने मन की भावनाएँ व्यक्त करने में असमर्थ रहते थे, विशेषकर लड़कियों के सामने। किसी एक घड़ी में किसी एक हँसमुख लड़की ने उनकी जिंदगी की धारा बदल दी, वे अपना परिवेश और समाज भूलकर सुख-संसार के सपने देखने लगे। वे भूल गए कि 'सम्राट एडवर्ड', भले ही 'एलिजाबेथ' के लिए राज सिंहासन त्यागकर जंगल चले गए थे किंतु कभी कोई 'एलिजाबेथ' किसी 'एडवर्ड' के लिए जरा सा भी त्याग नहीं कर सकी। इसलिए, जब समय आया तो उस लड़की ने किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर ली और इस दुःख को भूलने के लिए गोपाल बाबू संसार एवं समाज से दूर रहने लगे। जब कभी शादी की बात आती तो वे कोई न कोई बहाना बना कर टाल देते थे। उनके शादीशुदा अमित्र उन्हें यह कहकर चिढ़ाते रहते 'bachlor live like a king but die like a dog' अर्थात कुँवारे राजा की तरह जीते और कुत्ते की तरह मरते हैं। ये शब्द भी गोपाल बाबू को विचलित नहीं कर पाते थे क्योंकि उनकी यह धारणा हो गयी थी कि नारी एक धोखा है।
एकांतवास से बचने के लिए वे किताबी कीड़ा बन गए। फिर भी मन अशांत रहने पर धार्मिक पुस्तकें पढ़ने के साथ-साथ अधिक से अधिक समय पूजा-पाठ में व्यतीत करने लगे। लोग सोचते कि गोपाल बाबू धार्मिक व्यक्ति हैं पर लोगों की यह भावना उनके मन की ग्लानि को और अधिक उभाड़ने लगी। वे एकांत में देवी की प्रतिमा के समक्ष रोते रहते, मन ही मन में प्रार्थना करते ' हे महामाया! अपनी मायाशक्ति के परे जाने का आत्मबल दो'। मनुष्य स्वजन, परिजन, समाज सबसे दूर रह सकता है पर अपने मन से दूर नहीं रह सकता। गोपाल बाबू यह भूल गए थे कि विचार शक्ति से केवल विचार ही किये जा सकता है, दूसरी भूलों से बच सकते हैं, आत्मग्लानि से नहीं।
गोपाल बाबू भूल गये थे महामाया की श्री चंडी की यह बात "ॐ ग्यानिमामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा, बलादाकृष्णमोहाय महामाया प्रयच्छति।' अर्थात ज्ञानियों के मन में भी माया प्रवेश कराकर महामाया अपने मायाजाल में इस विश्व के समस्त प्राणियों को मुग्ध करती हैं। केवल पूजा-पाठ व धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन मनुष्य को दुःख से तब तक नहीं बचा सकते जब तक उसके मन से अनुराग की भावना दूर नहीं होती।श्री श्री चंडी में यह उक्ति भी है 'शरणागतदीनार्त परित्राणाय परायणे सर्वस्यातिर्हरेदेवि! नारायणी नमोस्तुते' अर्थात जब तक दीन होकर आर्त भाव से देवी के शरणागत नहीं होते तब तक मनुष्य जागतिक सुख-दुःख से नहीं बच सकते। गोपाल बाबु अपनी एक छोटी सी भूल के कारण अपने आपको धोखा दे रहे हैं औए शांति पाने में असमर्थ हैं। क्या महाशक्ति उनकी आत्मग्लानि के अश्रुओं से अपने चरण धुलवाकर भी उनकी भूल का सुधार कर आत्म-शांति नहीं प्रदान करेंगी?
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