कार्यशाला-
दोहा / रोला / कुण्डलिया
शब्द-शब्द प्रांजल हुए, अनगिन सरस श्रृंगार।
सलिल सौम्य छवि से द्रवित, अंतर की रसधार।।-अरुण शर्मा अंतर की रसधार, न सूखे स्नेह बढ़ाओ। मिले शत्रु यदि द्वार, न छोड़ो मजा चखाओ।। याद करे सौ बरस, रहकर वह बे-शब्द। टेर न पाए खुदा को, बिसरे सारे शब्द।। - संजीव
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दोहा / रोला / कुण्डलिया
शब्द-शब्द प्रांजल हुए, अनगिन सरस श्रृंगार।
सलिल सौम्य छवि से द्रवित, अंतर की रसधार।।-अरुण शर्मा अंतर की रसधार, न सूखे स्नेह बढ़ाओ। मिले शत्रु यदि द्वार, न छोड़ो मजा चखाओ।। याद करे सौ बरस, रहकर वह बे-शब्द। टेर न पाए खुदा को, बिसरे सारे शब्द।। - संजीव
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