विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
समन्वय अभियान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१
ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष: ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४
: मात्रा गणना नियम :
इस सारस्वत अनुष्ठान में आपका स्वागत है। मात्रा गणना करते समय शब्द का उच्चारण करने से लघु-गुरु निर्धारण में सुविधा होती है। कोई शंका होने पर संपर्क करें। ९४२५१८३२४४ / ७९९९५५९६१८। ईमेल- salil.sanjiv@gmail.com
१. ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है। २. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अपेक्षाकृत अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसे बोलने में अतिरिक्त समय नहीं लगता, इसलिए उसकी मात्रा १ ही गिनी जाती है। जैसे ध्वनि = १ +१ =२, क्षमा १+२, गृह = १+१ = २, प्रिया = १+२ =३ आदि।
४. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहलेवाले अक्षर के साथ गिनें। जैसे- वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि। संयुक्त अक्षर के पूर्व दीर्घ अक्षर हो तो उसमें अर्ध अक्षर मिलने पर भी दीर्घ ही रहेगा। जैसे वाक्पटु = २ + १ + १ =४ ।
५. संयुक्त अक्षर की ही तरह 'रेफ' वाले अक्षर के गणना करें। रेफ को आधे अक्षर की तरह उससे पहले वाले वर्ण के साथ गिनें, पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई प्रभाव नहीं होता। बर्रैया २+२+२, गर्राहट २+२+१+१ = ६, चर्रा २+२ = ४, अर्कान २+२+१ = ५ आदि।
६. अनुस्वर (बिंदी) जिस अक्षर पर हो वह लघु हो तो गुरु हो जाता है। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४, प्रियंवदा १+२+१+२ = ६, प्रार्थना = २+१+२ = ५ आदि।
७. अपवाद स्वरूप उच्चारण के अनुसार कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है क्योकि उसका उच्चारण पहले वाले अक्षर क साथ न किया जाकर बादवाले अक्षर के साथ किया जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५ आदि।
८. दोहा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं कथ्य व लय। कथ्य को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय' में अन्तर्निहित उच्चार में लगी समयावधि की गणना के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है।
रस, अलंकार, बिंब, प्रतीक, मिथक आदि लालित्यवर्धन हेतु है। कथ्य, लय व विधान की रचना को प्रभावी बनाते है।
९. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २ फाँस = २+१= ३ आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
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१. ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है। २. कम समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की एक तथा अपेक्षाकृत अधिक समय में बोले जानेवाले वर्ण या अक्षर की दो मात्राएँ गिनी जाती हैंं। तीन मात्रा के शब्द ॐ, ग्वं आदि संस्कृत में हैं, हिंदी में नहीं।
३. शब्द के आरंभ में आधा या संयुक्त अक्षर हो तो उसे बोलने में अतिरिक्त समय नहीं लगता, इसलिए उसकी मात्रा १ ही गिनी जाती है। जैसे ध्वनि = १ +१ =२, क्षमा १+२, गृह = १+१ = २, प्रिया = १+२ =३ आदि।
४. शब्द के मध्य में आधा अक्षर हो तो उसे पहलेवाले अक्षर के साथ गिनें। जैसे- वक्ष २+१, विप्र २+१, उक्त २+१, प्रयुक्त = १२१ = ४ आदि। संयुक्त अक्षर के पूर्व दीर्घ अक्षर हो तो उसमें अर्ध अक्षर मिलने पर भी दीर्घ ही रहेगा। जैसे वाक्पटु = २ + १ + १ =४ ।
५. संयुक्त अक्षर की ही तरह 'रेफ' वाले अक्षर के गणना करें। रेफ को आधे अक्षर की तरह उससे पहले वाले वर्ण के साथ गिनें, पहले लघु वर्ण हो तो गुरु हो जाता है, पहले गुरु होता तो कोई प्रभाव नहीं होता। बर्रैया २+२+२, गर्राहट २+२+१+१ = ६, चर्रा २+२ = ४, अर्कान २+२+१ = ५ आदि।
६. अनुस्वर (बिंदी) जिस अक्षर पर हो वह लघु हो तो गुरु हो जाता है। यथा- अंश = अन्श = अं+श = २१ = ३. कुंभ = कुम्भ = २१ = ३, झंडा = झन्डा = झण्डा = २२ = ४, प्रियंवदा १+२+१+२ = ६, प्रार्थना = २+१+२ = ५ आदि।
७. अपवाद स्वरूप उच्चारण के अनुसार कुछ शब्दों के मध्य में आनेवाला आधा अक्षर बादवाले अक्षर के साथ गिना जाता है क्योकि उसका उच्चारण पहले वाले अक्षर क साथ न किया जाकर बादवाले अक्षर के साथ किया जाता है। जैसे- कन्हैया = क+न्है+या = १२२ = ५ आदि।
८. दोहा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व हैं कथ्य व लय। कथ्य को सर्वोत्तम रूप में प्रस्तुत करने के लिए ही विधा (गद्य-पद्य, छंद आदि) का चयन किया जाता है। कथ्य को 'लय' में प्रस्तुत किया जाने पर 'लय' में अन्तर्निहित उच्चार में लगी समयावधि की गणना के अनुसार छंद-निर्धारण होता है। छंद-लेखन हेतु विधान से सहायता मिलती है।
रस, अलंकार, बिंब, प्रतीक, मिथक आदि लालित्यवर्धन हेतु है। कथ्य, लय व विधान की रचना को प्रभावी बनाते है।
९. अनुनासिक (चंद्र बिंदी) से मात्रा में कोई अंतर नहीं होता। धँस = ११ = २ फाँस = २+१= ३ आदि। हँस = ११ =२, हंस = २१ = ३ आदि।
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