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शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

vimarsh 2

विमर्श: २ 
देवता कौन हैं? 
 
देवता, 'दिव्' धातु से बना शब्द है, अर्थ 'प्रकाशमान होना', भावार्थ परालौकिक शक्ति जो अमर, परा-प्राकृतिक है और पूजनीय है। देवता या देव इस तरह के पुरुष और देवी इस तरह की स्त्रियों को कहा गया है। देवता परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक या सगुण रूप माने गए हैं।

बृहदारण्य उपनिषद के एक आख्यान में प्रश्न है कि कितने देव हैं? उत्तर- वास्तव में देव केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ कोटि (प्रकार); और पूछने ३ (विधि-हरि-हर या ब्रम्हा-विष्णु-महेश) फिर डेढ़ और फिर केवल एक (निराकार जिसका चित्र गुप्त है अर्थात नहीं है)। वेद मंत्रों के विभिन्न देवता (उपास्य, इष्ट) हैं। प्रत्येक मंत्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है।
देवताओं का वर्गीकरण- चार मुख्य प्रकार 
१. स्थान क्रम से वर्णित देवता- द्युस्थानीय यानी ऊपरी आकाश में निवास करनेवाले देवता, मध्यस्थानीय यानी अंतरिक्ष में निवास करने वाले देवता, और तीसरे पृथ्वीस्थानीय यानी पृथ्वी पर रहनेवाले देवता।
२. परिवार क्रम से वर्णित देवता- इन देवताओं में आदित्य, वसु, रुद्र आदि हैं।
३. वर्ग क्रम से वर्णित देवता- इन देवताओं में इन्द्रावरुण, मित्रावरुण आदि देवता हैं।
४. समूह क्रम से वर्णित देवता -- इन देवताओं में सर्व देवा (स्थान, वस्तु, राष्ट्र, विश्व आदि) गण्य हैं।

ऋग्वेद में स्तुतियों से देवता पहचाने जाते हैं। ये देवता अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, विश्वदेवा, सरस्वती, ऋतु, मरुत, त्वष्टा, ब्रहस्पति, सोम, दक्षिणा इन्द्राणी, वरुणानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि हैं। बहु देवता न माननेवाले सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मावाचक करते हैं। बहुदेवतावादी परमात्मात्मक रूप में इनको मानते है। पुराणों में इन देवताओं का मानवीकरण अथवा लौकिकीकरण हुआ, फ़िर इनकी मूर्तियाँ, संप्रदाय, अलग-अलग पूजा-पाठ बनाये गए।
धर्मशास्त्र में "तिस्त्रो देवता" (तीन देवता) ब्रह्मा, विष्णु और शिव का का कार्य सृष्टि का निर्माण, पालन और संहार माना जाता है। काल-क्रम से देवों की संख्या बढ़ती गई। निरुक्तकार यास्क के अनुसार,"देवताऒ की उत्पत्ति आत्मा से है"। महाभारत (शांति पर्व) तथा शतपथ ब्राह्मण में आदित्यगण क्षत्रिय देवता, मरुदगण वैश्य देवता, अश्विनी गण शूद्र देवता और अंगिरस ब्राहमण देवता माने गए हैं।  
आदित्या: क्षत्रियास्तेषां विशस्च मरुतस्तथा, अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ, स्मृतास्त्वन्गिरसौ देवा ब्राहमणा इति निश्चय:, इत्येतत सर्व देवानां चातुर्वर्नेयं प्रकीर्तितम।। 
शुद्ध बहु ईश्वरवादी धर्मों में देवताओं को पूरी तरह स्वतंत्र माना जाता है। प्रमुख वैदिक देवता गणेश (प्रथम पूज्य), सरस्वती, श्री देवी (लक्ष्मी), विष्णु, शक्ति (दुर्गा, पार्वती, काली), शंकर, कृष्ण, इंद्र, सूर्य, हनुमान, ब्रह्मा, राम, वायु, वरुण, अग्नि, शनि , कार्तिकेय, शेषनाग, कुबेर, धन्वंतरि, विश्वकर्मा आदि हैं।
देवता का एक वर्गीकरण जन्मा तथा अजन्मा होना भी है। त्रिदेव, त्रिदेवियाँ आदि अजन्मा हैं जबकि राम, कृष्ण, बुद्ध आदि जन्मा देवता हैं इसी लिए उन्हें अवतार कहा गया है। 
देवता मानव तथा अमानव भी है। राम, कृष्ण, सीता, राधा आदि मानव, जबकि हनुमान, नृसिंह आदि अर्ध मानव हैं जबकि मत्स्यावतार, कच्छपावतार आदि अमानव हैं। 
प्राकृतिक शक्तियों और तत्वों को भी देवता कहा गया हैं क्योंकि उनके बिना जीवन संभव न होता। पवन देव (हवा), वैश्वानर (अग्नि), वरुण देव (जल), आकाश, पृथ्वी, वास्तु आदि ऐसे ही देवता हैं। 
सार यह कि सनातन धर्म (जिसका कभी आरंभ या अंत नहीं होता) 'कंकर-कंकर में शंकर' कहकर सृष्टि के निर्माण में छोटे से छोटे तत्व की भूमिका स्वीकारते हुए उसके प्रति आभार मानता है और उसे देवता कहता है।इस अर्थ में मैं, आप, हम सब देवता हैं। इसीलिए आचार्य रजनीश ने खुद को 'ओशो' कहा और यह भी कि तुम सब भी ओशो हो बशर्ते तुम यह सत्य जान और मान पाओ। 
अंत में प्रश्न यह कि हम खुद से पूछें कि हम देवता हैं तो क्या हमारा आचरण तदनुसार है? यदि हाँ तो धरती पर ही स्वर्ग है, यदि नहीं तो फिर नर्क और तब हम सब एक-दूसरे को स्वर्गवासी बनाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं कर रहे। हमारा ऐसा दुराचरण ही पर्यावरणीय समस्याओं और पारस्परिक टकराव का मूल कारण है। 
आइए, प्रयास करें देवता बनने का। 
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