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सोमवार, 17 सितंबर 2018

muktika

मुक्तिका * बाग़ क्यारी फूल है हिंदी ग़ज़ल या कहें जड़-मूल है हिंदी ग़ज़ल . बात कहती है सलीके से सदा- नहीं देती तूल है हिंदी ग़ज़ल . आँख में सुरमे सरीखी यह सजी दुश्मनों को शूल है हिंदी ग़ज़ल . जो सुधरकर खुद पहुँचती लक्ष्य पर सबसे पहले भूल है हिंदी ग़ज़ल . दबाता जब जमाना तो उड़ जमे कलश पर वह धूल है हिंदी ग़ज़ल . है गरम तासीर पर गरमी नहीं मिलो-देखो कूल है हिंदी ग़ज़ल . मुक्तिका है नाम इसका आजकल कायदा है, रूल है हिंदी ग़ज़ल ***
संजीव
१७.९.२०१८

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