मुक्तिका
*
हक है मछली का उसको हवा भी मिले
सब सुखाये समंदर हैं दरबार ने
*
केंकड़ों का समय है बहुत कीमती
रेलगाड़ी बुलेट ली है सरकार ने
*
आम लोगों का क्या है जियें या मरें?
ख़ास ही खास को आये उपकारने
*
कल भिखारी थे, मालिक बने आज जो
वे दाता को लगते हैं दुतकारने
*
बात मन की करे मत, सुने हो विवश
सच विवश है बहुत झूठ स्वीकारने
***
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
*
हक है मछली का उसको हवा भी मिले
सब सुखाये समंदर हैं दरबार ने
*
केंकड़ों का समय है बहुत कीमती
रेलगाड़ी बुलेट ली है सरकार ने
*
आम लोगों का क्या है जियें या मरें?
ख़ास ही खास को आये उपकारने
*
कल भिखारी थे, मालिक बने आज जो
वे दाता को लगते हैं दुतकारने
*
बात मन की करे मत, सुने हो विवश
सच विवश है बहुत झूठ स्वीकारने
***
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें