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शनिवार, 29 सितंबर 2018

muktak

मुक्तक 
सम्मिलन साहित्यकारों का सुफलदायी रहे 
सत्य-शिव-सुन्दर सुपथ हर कलम आगे बढ़ गहे 
द्वन्द भाषा-बोलिओं में, सियासत का इष्ट है-
शारदा-सुत हिंद-हिंदी की सतत जय-जय कहे 
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नेह नर्मदा तीर पधारे शब्ददूत हिंदी माँ के 
अतिथिदेव सम मन भाते हैं शब्ददूत हिंदी माँ के
भाषा, पिंगल शास्त्र, व्याकरण हैं त्रिदेवियाँ सच मानो 
कथ्य, भाव, रस देव तीन हैं शब्ददूत हिंदी माँ के
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अक्षर सुमन, शब्द-हारों से, पूजन भारत माँ का हो 
गीतों के बन्दनवारों से, पूजन शारद माँ का हो
बम्बुलियाँ दस दिश में गूँजें, मातु नर्मदा की जय-जय 
जस, आल्हा, राई, कजरी से, वंदन हिंदी माँ का हो 

क्रांति का अभियान हिंदी विश्ववाणी बन सजे 
हिंद-हिंदी पर हमें अभिमान, हिंदी जग पुजे 
बोलियाँ-भाषाएँ सब हैं सहोदर, मिलकर गले -
दुन्दुभी दस दिशा में अब सतत हिन्दी की बजे 
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कोमल वाणी निकल ह्रदय से, पहुँच ह्रदय तक जाती है 
पुलक अधर मुस्कान सजाती, सिसक नीर बरसाती है
वक्ष चीर दे चट्टानों का, जीत वज्र भी नहीं सके- 
'सलिल' धार बन नेह-नर्मदा, जग की प्यास बुझाती है 
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