नवगीत:
संजीव
*
पानी-पानी
हुए बादल
संजीव
*
पानी-पानी
हुए बादल
आदमी की
आँख में
पानी नहीं बाकी
बुआ-दादी
हुईं मैख़ाना
कभी साकी
देखकर
दुर्दशा मनु की
पलट गयी
सहसा छागल
आँख में
पानी नहीं बाकी
बुआ-दादी
हुईं मैख़ाना
कभी साकी
देखकर
दुर्दशा मनु की
पलट गयी
सहसा छागल
कटे जंगल
लुटे पर्वत
पटे सरवर
लुटे पर्वत
पटे सरवर
तोड़ पत्थर
खोद रेती
दनु हुआ नर
खोद रेती
दनु हुआ नर
त्रस्त पंछी
देख सिसका
कराहा मादल
देख सिसका
कराहा मादल
जुगाड़े धन
भवन, धरती
रत्न, सत्ता और
भवन, धरती
रत्न, सत्ता और
खाली हाथ
आखिर में
मरा मनुज पागल
आखिर में
मरा मनुज पागल
***
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