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सोमवार, 24 सितंबर 2018

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एक रचना 
हर दिन 
*
सिया हरण को देख रहे हैं 
आँखें फाड़ लोग अनगिन। 
द्रुपद सुता के चीरहरण सम 
घटनाएँ होतीं हर दिन। 
*
'गिरि गोपाद्रि' न नाम रहा क्यों?
'सुलेमान टापू' क्यों है?
'हरि पर्वत' का 'कोह महाजन' 
नाम किया किसने क्यों है?
नाम 'अनंतनाग' को क्यों हम 
अब 'इस्लामाबाद' कहें?
घर में घुस परदेसी मारें 
हम ज़िल्लत सह आप दहें?
बजा रहे हैं बीन सपेरे 
राजनीति नाचे तिक-धिन 
द्रुपद सुता के चीरहरण सम 
घटनाएँ होतीं हर दिन। 
*
हम सबका 'श्रीनगर' दुलारा 
क्यों हो शहरे-ख़ास कहो?
'मुख्य चौक' को 'चौक मदीना' 
कहने से सब दूर रहो 
नाम 'उमा नगरी' है जिसका 
क्यों हो 'शेखपुरा' वह अब?
'नदी किशन गंगा' को 'दरिया-
नीलम' कह मत करो जिबह 
प्यार न जिनको है भारत से 
पकड़ो-मारो अब गईं-गईं 
द्रुपद सुता के चीरहरण सम 
घटनाएँ होतीं हर दिन। 
*
पण्डित वापिस जाएँ बसाए 
स्वर्ग बनें फिर से कश्मीर 
दहशतगर्द नहीं बच पाएं 
कायम कर दो नई नज़ीर 
सेना को आज़ादी दे दो 
आज नया इतिहास बने 
बंगला देश जाए दोहराया 
रावलपिंडी समर ठने 
हँस बलूच-पख्तून संग 
सिंधी आज़ाद रहें हर दिन 
द्रुपद सुता के चीरहरण सम 
घटनाएँ होतीं हर दिन। 
*

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