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शनिवार, 4 सितंबर 2021

वो भूली दास्तां : सरला देवी चौधरी और गाँधी जी

वो भूली दास्तां  : 
सरला देवी चौधरी और गाँधी जी  
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गाँधी जी के जीवन में कई महिलाएँ आईं। कस्तूरबा से उनका विवाह १२ साल की उम्र में करा दिया गया था। शेष में से उनकी अनुगामी थीं और कुछ सहयोगी। कुछ को उन्होंने बेटी माना लेकिन एक और थी, जिसे गाँधी जी अपना दिल दे बैठे थे। 

गाँधी जी के लंबे राजनीतिक जीवन में इसे फिसलन की तरह देखा गया, अफवाहें फैलनी शुरू हो गईं, घर टूटने की कगार पर आ गया, सम्मान दाँव पर लगने की नौबत आ गई तो गांधीजी ने अपने पैर वापस खींच लिए। 

दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलनों के कारण जानी-पहचानी शख्सियत बन चुके गाँधी जी वर्ष १९०१ में दक्षिण अफ्रीका से भारत, कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने तथा भारत में अपनी राजनीतिक ज़मीन को टटोलने के लिए आए। कांग्रेस के अधिवेशन एक युवती ने कांग्रेस को समर्पित एक गाना लिखकर कोकिलकंठी स्वर में गाया। तीखे नाक नक्शों वाली प्रखर मेधा की वह बंगाली सुंदरी औरों से  अलग थी। गाँधीजी उसे विस्मृत न कर सके। 

गाँधी जी १९१५ में भारत यह सोचकर लौटे कि स्थायी तौर पर अपने पराधीन देश को स्वाधीन बनाने की लड़ाई लड़ेंगे। अफ्रीका में किए गए प्रयोगों को भारत में दुहराएँगे। १९१७ तक गाँधी जी की पहचान देश में बन चुके थी।दो साल बाद उनके असहयोग आंदोलन को पूरे देश में अभूतपूर्व समर्थन मिला। इस बीच गाँधी जी को देशयात्रा के दौरान उस बंगाली महिला से फिर मिलने का अवसर मिला। अक्टूबर १९१९ में  जब वे सरला देवी चौधरी के लाहौर स्थित घर में रुके तो उनके प्यार में पड़ गए। सरला तब ४७ साल की थीं और गाँधी जी ५०  वर्ष के। सरला देवी नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवीन्द्र रवींद्रनाथ टैगोर की भांजी (बड़ी बहन की बेटी) थीं। लाहौर में जब गाँधी जी उनके घर ठहरे तो उनके पति चौधरी रामभुज दत्त आज़ादी आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण जेल में थे। 

'कस्तूरबा ए सीक्रेट डायरी' की लेखिका नीलिमा डालमिया कहती हैं- 'गांधीजी को वाकई सरला देवी से प्यार हो गया था। इस पर कस्तूरबा ने तीखी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की थी। ऐसा लगने लगा था कि गाँधी जी की शादी टूट न जाए। इससे उनके घर में भूचाल आ गया। बेटों ने ज़बरदस्त विरोध किया। कुल मिलाकर ये मामला बड़ा स्कैंडल बन गया। गाँधी ने जल्दी ही खुद को इससे किनारे कर लिया।'

लाहौर में जिस दौरान गाँधी जी सरला के घर में ठहरे, तब सार्वजनिक तौर पर भी लोगों ने उनकी करीबी का अहसास किया। गाँधी जी ने अपने भाषण में उनका ज़िक्र किया। गाँधी जी के पोते राजमोहन गाँधी ने जब तक महात्मा गाँधी की जीवनी नहीं लिखी थी, तब तक यह प्रेम प्रसंग केवल सुनी सुनाई बातों और अटकलों के रूप में मौजूद था।  वे पहले शख्स थे, जिन्होंने अपनी किताब के माध्यम से इसे सबके सामने ला दिया। राजमोहन ने तब कहा था, मुझे लगता है कि अगर ईमानदारी से गाँधी जी की बॉयोग्राफी लिख रहा हूँ तो उनका यह पहलू भी सामने आना चाहिए। बचपन में वे (राजमोहन गाँधी) अपने अभिभावकों से लगातार ये बात सुनते थे कि किस तरह अधेड़ उम्र में भी गाँधी जी फिसल गए थे। 

गाँधी जी ने लाहौर से लौटकर सरला देवी को पत्र लिखा, तुम मेरे अंदर पूरी शिद्दत से हो, तुमने अपने महान समर्पण के पुरस्कार के बारे में पूछा है, ये तो अपने आप खुद पुरस्कार है। दक्षिण अफ्रीका के अपने एक मित्र को पत्र लिखा, सरला का सानिध्य बहुत आत्मीय और अच्छा था, उसने मेरा बहुत ख्याल रखा। इस प्यार में पड़ने के कुछ महीनों बाद वो सोचने लगे थे कि उनके रिश्ते आध्यात्मिक शादी की तरह हैं। 

गाँधी जी ने अपने एक अन्य पत्र में सरलादेवी को लिखा कि वे (गाँधी जी) अक्सर उनके (सरला देवी के)  सपने देखते हैं। उन्होंने सरलादेवी के पति को बधाई दी कि सरला महान शक्ति या देवी हैं। अगस्त १९२० में गाँधी जी के सचिव महादेव देसाई ने रिकॉर्ड किया कि सरलादेवी के पाँच-छह पत्र लगातार मिले। एक बार तो सरलादेवी ने गाँधी जी को छह दिनों में १२ पत्र लिख डाले। उनके लेख गाँधी जी ने यंग इंडिया में लगातार छापे, नवजीवन के पहले पेज पर उनकी कविताएँ प्रकाशित कीं। गाँधी जी सरला देवी की कविताओं की तारीफ करते थे। 

१९२० में जब घर में सरलादेवी को लेकर हालात दुरूह होने लगे तो उदास गाँधी जी ने उनसे कहा कि उनके रिश्ते ख़त्म हो जाने चाहिए, क्योंकि मुश्किलें बढ़ रही हैं। हालांकि दोनों के रिश्ते कभी ख़त्म नहीं हुए लेकिन दोनों ने अपनी आत्मकथाओं में अपनी निकटताओं का ज़िक्र नहीं किया। बस एक जगह सरला देवी ने यह ज़रूर लिखा कि जब वे (सरला देवी) राजनीतिक तौर पर मुश्किल में थीं तो महात्मा गाँधी ने उनसे कहा था कि तुम्हारी हँसी राष्ट्रीय संपत्ति है, हमेशा हँसती रहो। यह संबंध अक्टूबर १९१९ से दिसंबर १९२० तक चला। 

'महात्मा गाँधी: ब्रह्मचर्य के प्रयोग' के लेखक और पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर कहते हैं, 'इसमें कोई शक नहीं कि दोनों के संबंध बहुत करीबी भरे थे। गाँधी जी सरलादेवी पर आसक्त थे। अपने मित्र केलनबैचर को लिखे पत्र में उन्होंने सरलादेवी और कस्तूरबा की तुलना कर डाली थी। इस पत्र से ही लगता है कि कस्तूरबा के मुकाबले जब उन्हें सरलादेवी का सानिध्य मिला और वो उनके करीब आए तो उनके संपूर्ण व्यक्तित्व ने उनपर जादू सा कर दिया।'

सरलादेवी का व्यक्तित्व वाकई मोहक और भव्य था।उनके लंबे काले बाल लहराते होते थे, गले में मालाएँ होती थीं और वो सिल्क की शानदार साड़ियाँ पहनती थीं, नाक नक्श तीखे थे, आँखों में गहराई दिखती थी। बंगाली साहित्य में सरलादेवी पर अलग से कई किताबें लिखी गई हैं वो समय से बहुत आगे और असाधारण महिला थीं। उनके पिता जानकीनाथ घोषाल कांग्रेस के आरंभिक दौर में प्रभावशाली नेताओं में थे, माँ स्वर्णकुमारी बांग्ला साहित्य और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थीं। कांग्रेस के संस्थापक एलेन ऑक्टोवियन ह्यूम से उनकी निकटता थी। जानकीनाथ घोषाल मजिस्ट्रेट थे और लंबे समय तक लंदन में रहे थे। 

सरला देवी अपने मामा रवींद्रनाथ टैगोर के साथ कोलकाता के टैगोर हाउस में रहीं, लिहाज़ा उन पर अपने ननिहाल का प्रभाव ज्यादा था। इस परिवार ने आज़ादी से पहले देश को कई प्रखर दिमाग वाली हस्तियाँ दीं. 'गाँधी: वायस ऑफ न्यू एज रिवोल्यूशन' में लेखक मार्टिन ग्रीन लिखते हैं, 'वे (सरला देवी) पढ़ाई में तेज़ थीं, कई विदेशी भाषाओं की जानकार थीं, वो संगीतज्ञ थीं और कवियित्री भी। वे बंगाल के सशस्त्र आज़ादी के आंदोलन में शामिल होने वाली पहली महिला थीं। वो पुरुषों के साथ सोसायटी की मीटिंग में हिस्सा लेती थीं, कुश्ती और बॉक्सिंग के मैच आयोजित कराती थीं।'

स्वामी विवेकानंद सरला देवी को पसंद करते थे, अक्सर सिस्टर निवेदिता से उनकी तारीफ करते थे। विवेकानंद जब वर्ल्ड कांग्रेस में शिकागो गए तो सरला देवी को भी एक युवा लड़की के रूप में अपने साथ ले जाना चाहते थे ताकि दुनिया भारत के उभरते हुए युवाओं को देख सके, लेकिन तब उनके पिता ने इस यात्रा की अनुमति नहीं दी। 'माई एक्सपेरिमेंट विद गाँधी' में लेखक प्रमोद कपूर ने सरला देवी के बाद के जीवन के बारे में लिखा, '१९२३ में उनके पति का देहांत हो गया। इसके बाद वो लाहौर से कोलकाता चली गईं। १९३५ में सरला देवी संन्यासिन बनकर हिमालय की ओर चली गईं। १९४५ में ७३ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। बाद में सरला देवी के बेटे दीपक का विवाह मगनलाल गाँधी की बेटी राधा (गाँधी जी की पोती) के साथ हुआ।'
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Koi bhuli dastan nhi.. Gandhi dilphek hi tha.. Dusro k biwi ya nhi chutti thi aur khud k biwi ko bahan-maa bana dia. Inke pati nhi rehte the, jail me the wo, tab inka natak shuru hua..manmohak,akarshak hai to ky lafde hi karenge ky sab,fir bolte hai dosti kyu nhi ho sakti ladka ladki me. Jab mentality hi aisi banai hai koi koi chhuta nhi nazar se. Sirf lafde karna hai..Aise pyar k naam pr bhuli dasta aur ky ky positive narrative banate hai fir ..#aise admi ne kitne ghar ujale, jabardasti brahmcharya lene ko kaha, aag laga di bahuto k rishto me, kitni mahilao ko brahmcharya k prayog me ghasita hypostise jese. Galat ko galat bola kare. Kachra nhi hai pati patniya jo mann chahe tab dhoka de de. Sharm ki baat hai pati jail me aur idhar udhar nazar marna sirf.