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शनिवार, 4 सितंबर 2021

चित्र पर रचना -

चित्र पर रचना - 



प्रसंग है एक नवयुवती छज्जे पर क्रोधित मुख मुद्रा में है 
जैसे छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है।
विभिन्न कवि इस पर कैसे लिखते?
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मैथिली शरण गुप्त
अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में, किसके नही दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।
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रामधारी सिंह दिनकर
दग्ध ह्रदय में धधक रही,
उत्तप्त प्रेम की ज्वाला,
हिमगिरी के उत्स निचोड़,
फोड़ पाताल, बनो विकराला,
ले ध्वन्सो के निर्माण त्रान से,
गोद भरो पृथ्वी की,
छत पर से मत गिरो,
गिरो अम्बर से वज्र सरीखी.
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श्याम नारायण पांडे
ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से
मान से, गुमान से, तुम गिरो मकान से
तुम डगर डगर गिरो, तुम नगर नगर गिरो
तुम गिरो अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।
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गोपाल दास नीरज
रूपसी उदास न हो, आज मुस्कुराती जा
मौत में भी जिन्दगी, के फूल कुछ खिलाती जा
जाना तो हर एक को, यद्यपि जहान से यहाँ
जाते जाते मेरा मगर, गीत गुनगुनाती जा..
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गोपाल प्रसाद व्यास
छत पर उदास क्युं बैठी है
तू मेरे पास चली आ री ।
जीवन का सुख दुख कट जाये ,
कुछ मैं गाऊं,कुछ तू गा री। तू
जहां कहीं भी जायेगी
जीवन भर कष्ट उठायेगी ।
यारों के साथ रहेगी तो
मथुरा के पेडे खायेगी।
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सुमित्रानन्दन पंत
स्वर्ण सौध के रजत शिखर पर
चिर नूतन चिर सुन्दर प्रतिपल
उन्मन उन्मन अपलक नीरव
शशि मुख पर कोमल कुन्तल पट
कसमस कसमस चिर यौवन घट
पल पल प्रतिपल
छल छल करती ,निर्मल दृग जल
ज्यों निर्झर के दो नीलकमल
यह रूप चपल, ज्यों धूप धवल
अतिमौन, कौन?
रूपसि बोलो,प्रिय, बोलो न?
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काका हाथरसी
गोरी छज्जे पर चढ़ी, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करें करतार
भली करें करतार, सभी जन हक्का बक्का
उत चिल्लाये सास, कैच ले लीजो कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ियो
उधर कूदियो नार, मुझे बख्शे ही रहियो।
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उपरोक्त कविताओं के रचनाकार ओम प्रकाश 'आदित्य' जी हैं
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इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
गोरी छज्जे पर चढ़ी, एक पांव इस पार.
परिवारीजन काँपते, करते सब मनुहार.
करते सब मनुहार, बख्श दे हमको देवी.
छज्जे से मत कूद. मालकिन हम हैं सेवी.
तेरा ही है राज, फँसा मत हमको छोरी.
धाराएँ बहु एक, लगा मत हम पर गोरी..
छोड़ूंगी कतई नहीं, पहुँचाऊंगी जेल.
सात साल कुनबा सड़े, कानूनी यह खेल.
कानूनी यह खेल, पटकनी मैं ही दूंगी.
रहूँ सदा स्वच्छंद, माल सारा ले लूंगी.
लेकर प्रेमी साथ, प्रेम-रुख मैं मोड़ूंगी.
होगी अपनी मौज, तुम्हें क्योंकर छोड़ूंगी..
लड़की करती मौज है, लड़के का हो खून.
एक आँख से देखता, एक-पक्ष क़ानून.
एक-पक्ष क़ानून, मुक़दमे फर्जी होते.
पुलिस कचेहरी मस्त, नित्यप्रति लड़के रोते.
लुट जाता घर बार, हाथ आती बस कड़की.
करना नहीं विवाह, देखना मत अब लड़की..
रचनाकार--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
स्थिति १ :
सबको धोखा दे रही, नहीं कूदती नार
वह प्रेमी को रोकती, छत पर मत चढ़ यार
दरवाज़े पर रुक ज़रा, आ देती हूँ खोल
पति दौरे पर, रात भर, पढ़ लेना भूगोल
स्थिति २
खाली हाथों आए हो खड़े रहो हसबैंड
द्वार नहीं मैं खोलती बजा तुम्हारा बैंड
शीघ्र डिनर ले आओ तो दोनों लें आनंद
वरना बाहर ही सहो खलिश, लिखो कुछ छंद
स्थिति ३:
लेडी गब्बर चढ़ गई छत पर करती शोर
मम्मी-डैडी मान लो बात करो मत बोर
बॉय फ्रेंड से ब्याह दो वरना जाऊँ भाग
छिपा रखा है रूम में भरवा लूँगी माँग
भरवा लूँगी माँग टापते रह जाओगे
होगा जग-उपहास कहो तो क्या पाओगे?
कहे 'सलिल' कवि मम्मी-डैडी बेबस रेडी 
मनमानी करती है घर-घर गब्बर लेडी
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