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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

लिंगाष्टक, शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं, शिव स्तुति

लिंगाष्टक
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
***
शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवायः ॥1॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय
नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवायः ॥2॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय
तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवायः ॥3॥
वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य
मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वेश्वानर लोचनाय
तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवायः ॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय
तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवायः ॥5॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ।
शिवलोक मवाप्रोगति शिवेन सह मोदते॥
|| इति श्रीमच्छड़राचार्य विरचितं शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् |
***
शिव स्तुति:
गोस्वामी तुलसीदास
*
नमामी शमीशान निर्वाण रूपमम् ।
विभुम् व्यापकम् ब्रह्म वेदस्सवरूपम् ।।
निजम् निर्गुणम् निर्विकल्पम् निरीहम् ।
चिदाकाशमाकाश वासं भजेहम् ।। १ ।।
निराकार ऊँकार मूलम् तुरीयम् ।
गिराग्यान गोतीश मीशम् गिरीशम् ।।
करालं महाकाल कालम् कृपालम् ।
गुणगार संसार पारम् नतोsहम् ।। २ ।।
तुषाराद्री संकाश गौरं गंभीरम् ।
मनोभूत कोटी प्रभा श्रीशरीरम् ।
स्फुरनमौली कल्लोलिनी चारू गंगा ।
लसत भालु बलेन्दु कंठे भुजंगा ।। ३ ।।
चलत कुण्डलम् भ्रू त्रिनेतरम् विशालम् ।
प्रसन्नानम् नील कंठम् दयालम् ।।
मृगाधीश चर्मामबरम् मुण्डमालम् ।
प्रिय शंकरम् सर्व नाथम् भजामी ।। ४ ।।
प्रचण्डम् प्रखंडम् प्रगलभम् परेशम् ।
अखंडम् अजम्भानु कोटी प्रकाशम् ।।
त्रिय शूल निर्मूलनम् शूलपाणी ।
भजेहम् भवानी पतिम् भाव गम्यम् ।। ५ ।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी ।
सदा सच्चिदान्नद दाता पुरारी ।।
चिदान्नद संदोह मोहापहारी ।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मनमथारी ।। ६ ।।
ना यावत उमानाथ पादार विन्दम् ।
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।।
न तावत सुखम् शान्ति संताप नाशम् ।
प्रसीद प्रभो सर्व भूतादिवासम् ।। ७ ।।
ना जानामी योगं जपम् नैव पूजा ।
नsतोहम् सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्् ।।
ज़रा जन्म दुखोःध्य ता तप्यमानम् ।
प्रभो पाहीशापन नमामीश शंभो ।। ८ ।।
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साभार: रामचरित मानस

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