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गुरुवार, 9 सितंबर 2021

पुरोवाक, विद्यासागर महथा संगीता पुरी

पुरोवाक
पुरोवाक्:
आचार्य संजीव
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पुरुषार्थ और भाग्य एक सिक्के के दो पहलू हैं या यूँ कहें कि उनका चोली-दामन का सा साथ है. जब गोस्वामी तुलसीदास जी 'कर्म प्रधान बिस्व करि राखा' और 'हुइहै सोहि जो राम रचि राखा' में से किसी एक का चयन नहीं कर पाते तो आदमी भाग्य और कर्म के चक्कर में घनचक्कर बन कर रह जाए तो क्या आश्चर्य?
आदि काल से भाग्य जानने और कर्म को मानने प्रयास होते रहे हैं. वेद का नेत्र कहा गया ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली, हस्त रेखा, मस्तक रेखा, मुखाकृति, शगुनशास्त्र, अंक ज्योतिष, वास्तु आदि के माध्यम से गतागत और शुभाशुभ को जानने का प्रयास करता रहा किन्तु त्रिकालज्ञ और सर्वज्ञ भी काल को न जान सके और महाकाल के गाल में समा गये.
ज्ञान का विधिवत अध्ययन, आंकड़ों का संकलन और विश्लेषण, अवधारणाओं परिकल्पन परीक्षण तथा प्राप्त परिणामों का आगमन-निगमन, निगमन-आगमन पद्धतियों अर्थात विशिष्ट से सामान्य और सामान्य से विशिष्ट की ओर परीक्षण जाकर नियमित अध्ययन हो तब विषय विज्ञान माना जाता है. यंत्रोपकरणों, परीक्षण विधियों और परिणामों को हर दिन प्रामाणिकता के निकष पर खरा उतरना होता है अन्यथा सदियों की मान्यता पल में नष्ट हो जाती है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र और सामुद्रिकी विदेशी आक्रमणों, ग्रंथागारों को जलाये जाने और आचार्यों को चुन-चुन कर मरे जाने के बाद से 'गरीब की लुगाई' होकर रह गयी है जिसे 'गाँव की भौजाई' मानकर खुद को ज्योतिषाचार्य कहनेवाले पंडित-पुजारी-मठाधीश तथा व्यवसायी गले से नहीं रहे, उसका शीलहरण भी कर रहे है. फलतः, इस विज्ञान शिक्षण-प्रशिक्षण की कोई सुव्यवस्था नहीं है. शासन - प्रशासन की ओर से विषय के अध्ययन की कोई योजना नहीं है, युवा जन इस विषय को आजीविका का माध्यम बनाने हेतु पढ़ना भी चाहें तो कोई मान्यता प्राप्त संस्थान या पाठ्यक्रम नहीं है. फलतः जन सामान्य नहीं विशिष्ट और विद्वान जन भी विरासत में प्राप्त आकर्षण और विश्वास के कारण तथाकथित ज्योतिषियों के पाखंड का शिकार हो रहे हैं.
अंधकार में दीप जलने का प्रयास करनेवालों में श्री कृष्णमूर्ति के समान्तर श्री विद्यासागर महथा और उनकी विदुषी पुत्री श्रीमती संगीता पुरी प्रमुख हैं. प्रस्तुत कृति दोनों के संयुक्त प्रयास से विकसित हो रही नवीन ज्योतिष-अध्ययन प्रणाली 'गत्यात्मक ज्योतिष' का औचित्य, महत्त्व, मौलिकता, भिन्नता और प्रामाणिकता पर केंद्रित है. इस कृति का वैशिष्ट्य प्रचलित जन मान्यताओं, अवधारणाओं तथा परम्पराओं की पड़ताल कर पाखंडों, अंधविश्वासों तथा कुरीतियों की वास्तविकता उद्घाटित कर ज्योतिष की आड़ में ठगी कर रहे छद्म ज्योतिषियों से जनगण को बचने के लिये सत्योद्घाटन करना है. श्री महथा ने ज्योतिष को अंतरिक्षीय गृह-पथों कटन बिन्दुओं को गृह न मानने अथवा सभी ग्रहों के कटन बिन्दुओं को समान महत्व देकर गणना करने का ठोस तर्क देकर गत्यात्मक ज्योतिष प्रामाणिकता सिद्ध की है.
यह ग्रंथ जड़-चेतन, जीव-जंतु, मानव तथा उसके भविष्य पर सौरमंडल के ग्रहों की गति के प्रभावों का अध्ययन तथा विश्लेषण कर समयपूर्व भविष्यवाणी की आधार भूमि निर्मित करता है। श्री महथा रचित आगामी ग्रन्थ उनके तथा सुशीला जी द्वारा विश्लेषित कुंडलियों के आँकड़े व् की गयी भविष्यवाणियों के विश्लेषण से गत्यात्मक ज्योतिष दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर लोकप्रियता अर्जित करेगा अपितु शिक्षित बेरोजगार युवा पीढ़ी अध्ययन, शोध और जीविकोपार्जन का माध्यम भी बनेगा, इसमें संदेह नहीं। मैं श्री विद्यासागर जी तथा संगीता जी के इस भगीरथ प्रयास का वंदन करते हुए सफलता की कामना करता हूँ.

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