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खरे-खरे प्रतिमान रच जियें आप सौ वर्ष।
जीवन बगिया में खिलें पुष्प सफलता-हर्ष।।
चित्र गुप्त जिसका सकें उसे आप पहचान।
काया वासित है वही, कर्म देव भगवान।।
खरे-खरे प्रतिमान रच जियें आप सौ वर्ष।
जीवन बगिया में खिलें पुष्प सफलता-हर्ष।।
चित्र गुप्त जिसका सकें उसे आप पहचान।
काया वासित है वही, कर्म देव भगवान।।
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छंद शास्त्र : आंकिक प्रतिमान
उलटी गणना
दस हरि, नौ देवी नमन, अष्ट सिद्धि वसु योग।
सप्त अग्नि, ऋषि, दिन, पुरी, लोक, रंग, नग भोग।।
छह दर्शन, रस, राग, ऋतु, शास्त्र, तंत्र, वेदांग।
पाँच देव, नद, इन्द्रियाँ, प्राण, भूत, शर, स्वांग।।
शिशु किशोर युव वृद्ध हैं, जग में केवल चार।
भोर दिवस संध्या निशा, जाने सब संसार।।
गत अब आगत तीन हैं काल, मात्र दो द्वार।
मृत्यु-जन्म के मध्य है, मात्र एक करतार।।
जोड़-घटा ले शून्य को, पड़े न कुछ भी फर्क।
गुणा-भाग हो शून्य का, मिले शून्य बिन तर्क।।
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