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शनिवार, 4 सितंबर 2021

मुक्तिका: उज्जवल भविष्य

मुक्तिका:
उज्जवल भविष्य
संजीव 'सलिल'
*
उज्जवल भविष्य सामने अँधियार नहीं है.
कोशिश का नतीजा है ये उपहार नहीं है..

कोशिश की कशिश राह के रोड़ों को हटाती.
पग चूम ले मंजिल तो कुछ उपकार नहीं है..

गर ठान लें जमीन पे ले आएँ आसमान.
ये सच है इसमें तनिक अहंकार नहीं है..

जम्हूरियत में खुद पे खुद सख्ती न करी तो
मिट जा
एँगे और कुछ उपचार नहीं है..

मेहनतो-ईमां का टका चलता हो जहाँ.
दुनिया में कहीं ऐसा तो बाज़ार नहीं है..

इंसान भी, शैतां भी, रब भी हैं हमीं यारब.
वर्ना तो हम खिलौने हैं कुम्हार नहीं हैं..

दिल मिल गए तो जात-धर्म कौन पूछता?
दिल ना मिला तो 'सलिल' प्यार प्यार नहीं है..

जागे हुए ज़मीर का हर आदमी 'सलिल'
महका गुले-गुलाब जिसमें खार नहीं है..
***

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