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शनिवार, 11 सितंबर 2021

कुण्डलिया : दन्त-पंक्ति, मुक्तक, बुंदेली दोहा

कुण्डलिया :
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे.....
संजीव 'सलिल'
*
दन्त-पंक्ति श्वेता रहे, सदा आपकी मीत.
मीठे वचन उचारिये, जैसे गायें गीत..
जैसे गायें गीत, प्रीत दुनिया में फैले.
मिट जायें सब झगड़े, झंझट व्यर्थ झमेले..
कहे 'सलिल' कवि, सँग रहें जैसे कामिनी-कंत.
जिव्हा कोयल सी रहे, मोती जैसे दन्त.
***
मुक्तक:
*
मरघट में है भीड़ पनघट है वीरान
मोल नगद का न्यून है उधार की शान
चमक-दमक की चाह हुई सादगी मौन
सब अपने में लीन किसको पूछे कौन
*
मुक्तक
*
जन्म दिवस पर बहुत बधाई
पग-तल तुमने मन्ज़िल पाई
शतजीवी हो, गगन छू सको
खुशियों की नित कर पहुनाई
*
अपनी ख्वाहिश नहीं मरने देना
मन को दुनिया से न डरने देना
हौसलों को बुलंद ही रखना
जी जो चाहे उसे करने देना
*
बुंदेली दोहांजलि
संजीव
*
जब लौं बऊ-दद्दा जिए, भगत रए सुत दूर
अब काए खों कलपते?, काए हते तब सूर?
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खूबई तौ खिसियात ते, दाबे कबऊं न गोड़
टँसुआ रोक न पा रए, गए डुकर जग छोड़
*
बने बिजूका मूँड़ पर, झेलें बरखा-घाम
छाँह छीन काए लई, काए बिधाता बाम
*
ए जी!, ओ जी!, पिता जी, सुन खें कान पिराय
'बेटा' सुनबे खों जिया, हुड़क-हुड़क अकुलाय
११-९-२०१४
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