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सोमवार, 6 सितंबर 2021

पुनरुक्ति अलंकार

अलंकार सलिला
पुनरुक्ति अलंकार
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पुनरुक्ति अथवा वीप्सा अलङ्कार में काव्य अथवा वाक्य में एक ही शब्द किसी भाव को पुष्ट करने के लिए उसी अर्थ में बार-बार प्रयोग किया जाता है। यथा इस अलङ्कार को परिभाषित करते हुए मेरा 'बार-बार' का उसी अर्थ में प्रयोग पुनरुक्ति है। 
यह संस्कृत श्लोक वीप्सा अलङ्कार का सुन्दर उदाहरण है :

शैले-शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे-गजे।
साधवो न हि सर्वत्रं, चन्दनं न वने-वने ॥

इस अलङ्कार के तीन भेद हैं, और उन भेदों में भी सूक्ष्म विभेद हैं।

१. पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार - पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार में एक ही शब्द उसी रूप में दोबारा प्रयोग किया जाता है। इसके ७ भेद हैं :

१.१ सञ्ज्ञा पूर्ण पुनरुक्ति - जिसमें सञ्ज्ञा शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। साहिर लुधियानवी का लिखा, रवि का संगीतबद्ध किया और आशा भोंसले का गाया नीलकमल का यह गीत जिसमें रोम शब्द की पुनरुक्ति हुई है :
हे रोम रोम में बसने वाले राम
हे रोम रोम में बसने वाले राम
जगत के स्वामी हे अंतर्यामी
मै तुझसे क्या माँगू?

१.२ सर्वनाम पूर्ण पुनरुक्ति — जिसमें सर्वनाम शब्दों की पुनरावृत्ति होती है। जैसे, जी एम दुर्रानी के गाए कमर जलालाबादी के लिखे पण्डित अमरनाथ तथा हुस्नलाल-भगतराम के संगीत निर्देशन में मिर्जा-साहिबान (१९४७) का यह गीत जिसमें सर्वनाम शब्द 'कहाँ-कहाँ' पूर्ण पुनरुक्ति हुई है।
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ -२
बदनाम होगी मेरी कहानी कहाँ-कहाँ -२

ओ रोने वाले अब तेरा दामन भी फट गया -२
पहुँचेगी आँसुओँ की रवानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ

जिस बाग़ पर निगाह पड़ी वो उजड़ गया -२
बरसाऊँ अपनी आँख का पानी कहाँ-कहाँ -२
खायेगी ठोकरें ये जवानी कहाँ-कहाँ

१.३ विशेषण पूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'जाने-अनजाने' (१९७१) के लता मंगेशकर और मुहम्मद रफी के गाए, शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में हसरत जयपुरी के लिखे इस गीत में 'नीली नीली' शब्द का आँखों के विशेषण के रूप में प्रयोग
तेरी नीली नीली आँखों के
दिल पे तीर चल गए
चल गए चल गए चल गए
ये देख के दुनियावालों के
दिल जल गए
जल गए जल गए जल गए

१.४ क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति अलङ्कार - क्रिया-विशेषण पुनरुक्ति प्रयोग  'झूम झूम' के रूप में 'अंदाज़' में नौशाद के संगीत निर्देशन में मुकेश के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। इस गीत में सञ्ज्ञा 'आज' तथा क्रिया 'नाचो' की भी पुनरुक्ति है। यह गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा है।
झूम झूम के नाचो आज नाचो आज 
गाओ खुशी के गीत हो
गाओ खुशी के गीत
आज किसी की हार हुई है, 
आज किसी की जीत हो
गाओ खुशी के गीत हो


१.५ विस्मयादिबोधक पुनरुक्ति अलङ्कार का प्रयोग 'रामा रामा' के अनूठे प्रयोग से 'नया जमाना' (१९७१) लता मंगेशकर के गाए इस गीत में देखा जा सकता है। संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा गीतकार आनन्द बख्शी हैं।
हाय राम
रामा रामा गजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे
हाल हमारा अजब हुई गवा रे
रामा रामा गजब हुई गवा रे


१.६ विभक्ति सहित पुनरुक्ति, इसमें पुनरुक्त शब्दों के मध्य में विभक्ति शब्द होता है। जैसे कि 'सन्त ज्ञानेश्वर' (१९६४) फिल्म के लिए मुकेश तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में शब्दों की पुनरावृत्ति के बीच विभक्ति सूचक शब्द 'से' का प्रयोग हुआ है। गीतकार भरत व्यास हैं तथा संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का है।
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
ज्योत से ज्योत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये जो दीन दुखी,
राह में आये जो दीन दुखी
सब को गले से लगते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो

१.७ क्रिया पुनरुक्ति का प्रयोग भी कुछ गीतों में देखा जा सकता है। जैसे कि हेमन्त कुमार तथा लता मंगेशकर के गाए इस गीत में क्रिया और क्रिया-विशेषण दोनों ही की पुनरावृत्ति होती है। पायल(१९५७) के इस गीत के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण तथा संगीतकार हेमन्त कुमार स्वयं ही हैं
चलो चले रे सजन धीरे धीरे
बलम धीरे धीरे सफर है प्यार का
खोई खोई है यह रात रंगीली
नजर है नशीली समां इकरार का

२. अपूर्ण पुनरुक्ति - इसके ३ प्रकार हैं। 
२.१ दो सार्थक सानुप्रास शब्दों का मेल, यह शब्द सञ्ज्ञा, क्रिया, विशेषण, क्रिया-विशेषण कुछ भी हो सकते हैं। 'मिस इण्डिया' फिल्म के इस गीत में विभक्ति सहित सानुप्रास सञ्ज्ञा तथा सर्वनाम शब्दों का प्रयोग देखा जा सकता है। राजेन्द्र कृष्ण के गीत को सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में शमशाद बेगम ने यह गीत गाया है।
है जैसे को तैसा
नहले पे दहला
दुनिया का प्यारे
असूल है ये पहला
जैसे को तैसा
नहले पे दहला

२.२ दो निरर्थक शब्दों की पुनरुक्ति से, जैसे खटा खट, झटा झट, फटाफट, फट फट, लाटू बाकू आदि इसका उदाहरण नीचे दिया गया है। जैसे किशोर कुमार और शमशाद बेगम के गाए इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का बहुतायत से प्रयोग हुआ है, और अनेक स्थानों पर सार्थक अथवा निरर्थक शब्दों का मेल दिखता है। प्रेम धवन के लिखे गीत को मदनमोहन ने संगीत दिया है फिल्म है 'अदा' (१९५१)।
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं उँचे सुरों में गाऊँ
मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
होय मैं उँचे सुरों में गाऊँ
अजि मैं तुमसे भी उँचा जाऊँ
सा रे गा
रे गा मा
गा मा पा
मा पा धा
पा धा नि
धा नि पा
नि सा रे ए ए ए
सा रे गा रे गा मा गा मा पा

जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
मैं झट पट झटा पट बोलूं
मैं फट फट फटा फट बोलूं
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट पट झट पट
फट फट फट फट
झट फट झट फट
फट फट फट फट ट्र्र्रर्र्र

जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकता हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकती हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
मैं धीरे धीरे बोलूँ
मैं तुमसे भी धीरे बोलूँ
आओ दिल की बात करें
आप हमसे दूर रहें
हम तुम पे मरते हैं
हम तुमसे डरते हैं
हम जान लुटाते हैं
हम जान छुडाते हैं
हम दिल के
तुम दिल के खोटे हो
बेपेंदी के लोटे हो
डबल रोटे हो
तुम बहुत ही मोटे हो
ओएँऽऽऽऽ
आँऽऽऽऽ

जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
मैं कर सकता हूँ तुमसे भी बढ़ चढ़ के बढ़ चढ़ के
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ
मैं मीठा मीठा गाऊँ
मैं तुमसे भी मीठा गाऊँ

जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
तेरा इंतेज़ार है
जिया बेक़रार है
छाई बहार है
आजा मोरे बालमा
बालम आए बसो मोरे मन मै बा आ आ आऽऽऽऽ
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के अजी बढ़ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
जो तुम करो मैं कर सकती हूँ बढ़ के बढ चढ के
तुम कर सकती हो मुझसे भी बढ चढ के बढ चढ के
बढ चढ के बढ चढ के

२.३ एक सार्थक और एक निरर्थक शब्द की पुनरुक्ति से, उदाहरणार्थ गोल-माल, गोल-मोल-झोल आदि। 'हाफ-टिकट' में किशोर कुमार के गाए, सलिल चौधरी के संगीत में सजे इस गीत में अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार के सभी रूपों का आनन्द लिया जा सकता है।

या या या ब ग या युं या ब ग उन
आ रहे थे इस्कूल से रास्ते में हमने देखा
एक खेल सस्ते में
क्या बेटा क्या आन मान
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह

अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह

चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह

अरे वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह

होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू

छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुक-छुक-छुक चली जाती है रेल
छुप-छुप-छुप तोता-मैना का मेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
प्यार की पकौड़ी, मीठी बातों की भेल
थोड़ा नून, थोड़ी मिर्च, थोड़ी सूँठ, थोड़ा तेल

अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह बोल

चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए अरे वाह रे बेटा
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह

गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
गोल-मोल-झोल मोटे लाला शौकीन
तोंद में छुपाए हैं चिराग़-ए-अलादीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
तीन को हमेशा करते आए साढ़े-तीन
ज़रा नाप, ज़रा तोल, इसे लूट, उससे छीन

अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह

चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए

अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह

होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू
होय लाटू बाकू ओ बाकू

कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
कोई मुझे चोर कहे कोई कोतवाल
किसपे यक़ीन करूँ मुश्किल सवाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
दुनिया में यारो है बड़ा-ही गोलमाल
कहीं ढोल, कहीं पोल, सीधी बात टेढ़ी चाल

अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह

अरे चील चिल चिल्लाके कजरी सुनाए
झूम-झूम कौवा भी ढोलक बजाए
अरे वाह वाह वाह, अरे वाह वाह वाह
अरे वाह वाह वाह वाह अरे वाह वाह वाह वाह
उन बाबा मन की आँखें खोल

३. अनुकरणात्मक पुनरुक्ति अलङ्कार, इसमें किसी वस्तु की कल्पित ध्वनि को आधारित कर बने शब्दों का प्रयोग करते हैं। जैसे, रेल के लिए 'छुक छुक' (पिछले गीत में), बरसात के लिए 'रिमझिम', 'झमाझम', मेंढक की 'टर्र-टर्र', घोड़े की 'हिनहिन' आदि। इसमें सार्थक-निरर्थक किसी भी प्रकार के शब्द हो सकते हैं। जैसे मनोज कुमार की फिल्म 'यादगार' (१९७०) के इस गीत का मुखड़ा, वर्मा मलिक के इस गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने सुरों में सजाया है और महेन्द्र कपूर ने गाया है।
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
बात है लम्बी मतलब गोल
खोल न दे ये सबकी पोल
तो फिर उसके बाद
एक तारा बोले
तुन तुन सुन सुन सुन
एक तारा बोले तुन तुन
क्या कहे ये तुमसे सुन सुन
एक तारा बोले
तुन तुन तुन तुन तुन

और अन्त में इस गीत में भी अपूर्ण पुनरुक्ति अलङ्कार का पूर्ण आनन्द लें

ईना मीना डीका, डाइ, डामोनिका
माका नाका नाका, चीका पीका रीका
ईना मीना डीका डीका डे डाइ डामोनिका
माकानाका माकानाका चीका पीका रोला रीका
रम्पम्पोश रम्पम्पोश

विशेष टिप्पणी - वीप्सा अलङ्कार के समान ही यमक अलङ्कार में शब्दों की पुनरावृत्ति होती है, किन्तु इनमें अन्तर यह है कि वीप्सा / पुनरुक्ति अलङ्कार में शब्द का अर्थ एक ही होता है, किन्तु यमक अलङ्कार में स्थान के अनुसार शब्द का अर्थ परिवर्तित हो जाता है। जैसे आशा भोंसले के गाए 'सौदागर' (१९७३) के इस गीत में सजना दो अर्थों में प्रयोग किया गया है, यह यमक अलङ्कार का उत्तम उदाहरण है। गीत और संगीत दोनों रवीन्द्र जैन के हैं।
सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
ज़रा उलझी लटें सँवार लूँ
हर अंग का रंग निखार लूँ
के सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
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© अरविन्द व्यास, सर्वाधिकार सुरक्षित।

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