जागे बहुत, चलो अब सोएँ
किसका कितना रोना रोएँ?
नेता-अफसर माखन खाएँ
आम आदमी दही बिलोएँ
पाये-जोड़े की तज चिंता
जो पाया, दे कर खुद खोएँ
शासन चाहे बने भिखारी
हम-तुम केवल साँसें ढोएँ
रहे विपक्ष न शेष देश में
फूल रौंदकर काँटे बोएँ
सत्ता करे देश को गंदा
जनगण केवल मैला धोएँ
२१-८-२०१७
***
***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें