गीत
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किसके-किसके नाम करूँ मैं, अपने गीत बताओ रे!
किसके-किसके हाथ पिऊँ मैं, जीवन-जाम बताओ रे!!
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चंद्रमुखी थी जो उसने हो, सूर्यमुखी धमकाया है
करी पंखुड़ी बंद भ्रमर को, निज पौरुष दिखलाया है
''माँगा है दहेज'' कह-कहकर, मिथ्या सत्य बनाया है
किसके-किसके कर जोड़ूँ, आ मेरी जान बचाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ मैं, अपनी पीर बताओ रे!!
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''तुम पुरुषों ने की रंगरेली, अब नारी की बारी है
एक बाँह में, एक चाह में, एक राह में यारी है
नर निश-दिन पछतायेगा क्यों की उसने गद्दारी है?''
सत्यवान हूँ हरिश्चंद्र, कोई आकर समझाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ कवि की जागीर बताओ रे!!
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महिलायें क्यों करें प्रशंसा?, पूछ-पूछ कर रूठ रही
खुद सवाल कर, खुद जवाब दे, विषम पहेली बूझ रही
द्रुपदसुता-सीता का बदला, लेने की क्यों सूझ रही?
झाड़ू, चिमटा, बेलन, सोंटा कोई दूर हटाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ अपनी तकदीर बताओ रे!!
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देवदास पारो को समझ न पाया, तो क्यों प्यार किया?
'एक घाट-घर रहे न जो, दे दगा', कहे कर वार नया
'सलिल बहे पर रहता निर्मल', समझाकर मैं हार गया
पंचम सुर में 'आल्हा' गाए, 'कजरी' याद दिलाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ जिव्हा-शमशीर बताओ रे!!
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कुसुम, सुमन, नीलू, अमिता, पूर्णिमा, नीरजा आएँगी
'पत्नी को परमेश्वर मानो', सबको पाठ पढ़ाएँगी
पत्नीव्रती न जो कवि होगा, उससे कलम छुड़ाएँगी
कोई भी मौसम हो तुम गुण पत्नी के ही गाओ रे!
किसके-किसके नाम करूँ कवि आहत वीर बताओ रे!!
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