कुल पेज दृश्य

सोमवार, 23 अगस्त 2021

दोहा कजलियाँ

दोहा सलिला 
मिली तरुण की तरुणता, संगीता के साथ
याद हरी हो गई झट, झुका आप ही माथ
*
संस्कार ही अस्मिता, सीख रखें हम याद 
गूँगे के गुड़ सा सरस, स्नेह सलिल का स्वाद  
*
अनुकृति हो सद्गुणों की, तभी मिले सम्मान 
पथिक सदृश हों मधुर हम, जीवन हो रसखान 
कान कजलियाँ खोंसकर, दें मन से आशीष
पूज्य-चरण पर हो विनत, सदा हमारा शीश 
लोक मनाता कजलियाँ, गाकर कजरी गीत 
कजरारे बंकिम नयन, कहें बनो मन मीत 
*
मन मंदिर में बस गए, जो जन वे हैं धन्य 
बसा सके जो किसी को, सचमुच वहीअनन्य 
अपने अपनापन बिसर, बनते हों जब गैर 
कान कजलिया खोँसिए, मिटा दिलों से बैर 
*
२३-८-२०२१  

कोई टिप्पणी नहीं: