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शनिवार, 14 अगस्त 2021

कुण्डलियाँ

कुण्डलियाँ:
आती उजली भोर..
संजीव 'सलिल'
*
छाती छाती ठोंककर, छा ती है चहुँ ओर.
जाग सम्हल सरकार जा, आती उजली भोर..
आती उजली भोर, न बंदिश व्यर्थ लगाओ.
जनगण-प्रतिनिधि अन्ना, को सादर बुलवाओ..
कहे 'सलिल' कविराय, ना नादिरशाही भाती.
आम आदमी खड़ा, वज्र कर अपनी छाती..
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रामदेव से छल किया, चल शकुनी सी चाल.
अन्ना से मत कर कपट, आयेगा भूचाल..
आएगा भूचाल, पलट जायेगी सत्ता.
पल में कट जायेगा, रे मनमोहन पत्ता..
नहीं बचे सरकार नाम होगा बदनाम.
लोकपाल से क्यों डरता? कर कर इसे सलाम..
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अनशन पर प्रतिबन्ध है, क्यों, बतला इसका राज?
जनगण-मन को कुचलना, नहीं सुहाता काज..
नहीं सुहाता काज, लाज थोड़ी तो कर ले.
क्या मुँह ले फहराय तिरंगा? सच को स्वर दे..
चोरों का सरदार बना ईमानदार मन.
तज कुर्सी आ तू भी कर ले अब तो अनशन..
१४-८-२०११ 
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