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रविवार, 29 अगस्त 2021

ताँका

ताँका
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ताँका (短歌) जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। ताँका पाँच पंक्तियों और ५+७+५+७+७=३१ वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है। ... इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है।
*
स्नेह सलिल 
लहरें अनगिन 
चुल्लू भर पी 
अब तक न जिया 
अब जिंदगी को जी।  
*
आदमी को भी 
मयस्सर नहीं है 
इंसान होना 
बन प्रकृति मित्र 
ज्यों गुलाब का इत्र। 
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बिना आहट
सांझ हो या सवेरे
लिये चाहत
ओस बूँद बिखेरे
दूब पर मौसम। 
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मंजिल मिली
हमसफर बिछड़े
सपने टूटे
गिला मत करना
फिर चल पड़ना। 
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तितली उड़ी
फूल की ओर मुड़ी
मुस्काई कली
हवा गुनगुनाई
झूम फागें सुनाईं। 
*
घमंड थामे
हाथ में तलवार
लड़ने लगा
अपने ही साये से
उलटे मुँह गिरा। 
*
सियासत है 
तीन-पाँच का खेल
किंतु बेमेल.
जनता मजबूर
मरी जा रही झेल। 
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बाप ना बेटा
सिर्फ सत्ता है प्यारी। 
टकराते हैं
अपने स्वार्थ हित
जनता से गद्दारी। 
*
खाते हैं मेवा
कहते जनसेवा। 
देवा रे देवा!
लगा दे पटकनी
बना भी दे चटनी। 
*
क्यों करेगी
किसी से छेड़छाड़
कोई लड़की?
अगर है कड़की
करेगी डेटिंग। 
*
कुछ गलत
बदनाम हैं सभी। 
कुछ हैं सही
नेकनाम न सब। 
किसका करतब?
*
जी भर जियो
ख़ुशी का घूँट पियो
खूब मुस्काओ
लक्ष्य निकट पाओ
ख़ुशी के गीत गाओ
*
सूरज बाँका 
झुरमुट से झाँका 
उषा ने आँका
लख रूप सलोना
लिख दिया है ताँका। 

खोज जारी है 
कौन-कहाँ से आया? 
किसने भेजा? 
किस कारण भेजा?
कुछ नहीं बताया।  
*
कैसे बताऊँ
अपना परिचय?
नहीं मालूम
कहाँ से आ गया हूँ?
और कहाँ है जाना?
*

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