कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष:
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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कृष्ण भारतीय इतिहास का वह पात्र है जिसे संत और गृहस्थ, राजा और रंक, बालक और वृद्ध, स्त्री और पुरुष हिंदू और मुसलमान सभी निरंतर स्मरण करते हैं।
हो चुका अवतार,
अब हम
याद करते हैं मगर
अनुकरण करते नहीं,
क्यों यह विरोधाभास है?
इस विरोधाभास का मूल कारण यह है कि कृष्ण जो हैं, वह नहीं हैं और जो नहीं हैं वही हैं। इसमें अतिशयोक्ति नहीं है, यह सत्य है। कृष्ण नंद यशोदा के पुत्र होकर भी नहीं हैं और न होकर भी हैं। वे नटखट, चोर, छलिया, रणछोड़, पराक्रमी, कुटिल, सरल, नटवर, वाग्मी, धूर्त, दुखहर्ता, सुखदाता, परम मित्र आदि आदि हैं भी और नहीं भी। वे सज्जनों और भक्तों के लिए इष्ट हैं तो आततायी और अनाचारी के लिए अनिष्ट हैं।
कृष्ण लोकदेवता भी हैं और राजाओं के आराध्य भी हैं। रासलीला के माध्यम से जनगण के मन पर शासन करनेवाले कृष्ण के मन पर उनके भक्तों का शासन रहता है।
कृष्ण के जन्म से लेकर देहावसान तक हर घटना विवाद का कारण बनी। कृष्ण को छोड़कर हर व्यक्ति का हाल बेहाल हुआ पर वे पूरी तरह शांत और निर्लिप्त रहे।
कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों में सत्य और कल्पना का ऐसा और इतना अधिक मिश्रण कर दिया गया है कि सत्य का अनुमान ही संभव नहीं है। इसके बाद भी कृष्ण के प्रति प्रेम और समर्पण करनेवालों की कभी कमी नहीं हुई।
कल्पना इतनी मिला दी,
सत्य ही दिखता नहीं
पंडितों ने धर्म का,
हर दिन किया उपहास है
कृष्ण के पश्चात उन पर रचित प्रथम महत्वपूर्ण ग्रंथ हरिवंशपुराण में राधा नामक पात्र का उल्लेख ही नहीं है। आधुनिक काल में कृष्ण पर सात कालजयी उपन्यास लिखनेवाले स्वनामधन्य कन्हैयालाल माणिकराव मुंशी भूमिका में यह स्वीकारने के बाद भी कि राधा काल्पनिक चरित्र है, लोकमान्यता की दुहाई देकर राधा का चित्रण करते हैं।
गढ़ दिया राधा-चरित,
शत मूर्तियाँ कर दीं खड़ी
हिल गयी जड़ सत्य की,
क्या तनिक भी अहसास है?
सर्वोच्च न्यायालय में कृष्ण-राधा का विवाह हुए बिना, उनकी युगलमूर्ति को लिव इन के रूप में बताने के प्रयास किए जा चुके हैं।
शत विभाजन मिटा,
ताकतवर बनाया देश को
कृष्ण ने पर
भक्त तोड़ें,
रो रहा इतिहास है
कृष्ण ने धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक रूप में खंड-खंड हो चुके देश को अखंड बनाकर ही दम लिया पर उनके वंशज और भक्त होने का दावा करनेवाले अपने स्वार्थ और हितसाधन में इतने व्यस्त हैं कि धर्म, देश और समाज के विघटन की चिंता ही नहीं है उन्हें।
कृष्ण ने कंस जरासंध आदि दुराचारी शासकों की मिट्टी प्लीज कर दी पर कब्जा, सुदामा, नरसी मेहता जैसे दीनों-हीनों के लिए सर्वस्व निछावर करने में पीछे न रहे जबकि उनके अनुयायियों का आचरण सर्वथा विपरीत है।
रूढ़ियों से जूझ
गढ़ दें कुछ प्रथाएँ
स्वस्थ्य हम
देश हो मजबूत,
कहते कृष्ण-
'हर जन खास है'
कृष्ण ने राजतंत्र के रहते हुए भी, लोक के अधिकारों को वरीयता देकर उनकी रक्षा की। आज लोकतंत्र में अपराधी नेता, लोक के अधिकारों पर डाका डाल रहे हैं तथापि तंत्र के कानों पर जूं नहीं रेंग रही।
भ्रष्ट शासक
आज भी हैं,
करें उनका अंत मिल
सत्य जीतेगा
न जन को हो रहा
आभास है।
कृष्ण ने 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' के सिद्धांत को मूर्त किया, जबकि आज फल के लोभ में उचित-अनुचित साधनों को अपनाने में किसी को किंचित्मात्र भी संकोच नहीं है।
फ़र्ज़ पहले
बाद में हक़,
फल न अपना
साध्य हो
चित्र जिसका गुप्त
उसका देह यह
आवास है।
कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर विविध आयोजन अवश्य करें पर कृष्ण के उपदेशों, नीतियों व आदर्शों का यथाशक्ति अनुकरण अवश्य करें।
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संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर , ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४
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