तेवरी / मुक्तिका :
मुमकिन
संजीव 'सलिल'
*
शीश पर अब पाँव मुमकिन.
धूप के घर छाँव मुमकिन..
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बस्तियों में बहुत मुश्किल
जंगलों में ठाँव मुमकिन..
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नदी सूखी, घाट तपता.
तोड़ता दम गाँव मुमकिन..
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सिखाता उस्ताद कुश्ती.
छिपाकर इक दाँव मुमकिन..
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कौन पाहुन है अवैया?
'सलिल'-अँगना काँव मुमकिन..
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4-6-2010
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 8 जून 2021
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