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रविवार, 4 अप्रैल 2021

कविता कोरोना

एक रचना
*
रक्तबीज था हुआ कभी जो
लौट आया है।
राक्षस ने कोरोना का
नाम पाया है।
गिरेगी विष बूँद
जिस भी सतह पर
उसे छूकर मनुज जो
आगे बढ़ेगा
उसीको माध्यम बनाकर
यह चढ़ेगा
बढ़ा तन का ताप
देगा पीर थोड़ी
किन्तु लेगा रोक श्वासा
आस छोड़ी
अंतत: स्वर्गीय हो
चाहे न भाया है।
सीख दुर्गा माई से
हम भी तनिक लें
कोरोना जी बच सकें
वह जगह मत दें
रहें घर में, घर बने घर
कोरोना से कहें: 'जा मर'
दूरियाँ मन में न हों पर
बदन रक्खें दूर ही हम
हवा में जो वायरस हैं
तोड़ पंद्रह मिनिट में दम
मर-मिटें मानव न यदि
आधार पाया है।
जलाएँ मिल दीप
आशा के नए हम
भगाएँ जीवन-धरा से
भय, न हो तम
एकता की भावधारा
हो सबल अब
स्वच्छता आधार
जीवन का बने अब
न्यून कर आवश्यकताएँ
सर तनें सब
विपद को जय कर
नया वरदान पाया है
रक्तबीज था हुआ कभी जो
लौट आया है।
राक्षस ने कोरोना का
नाम पाया है।
*
संजीव
४.४.२०२०
९४२५१८३२४४ 

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