व्यंग्यपरक दोहे
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गुरु को धता बताइए, गुरु के गुरु बन आप
जिससे सीखें नापना, प्रथम उसी को नाप
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माँ ने बेटी से कहा, तू चेरी पति नाथ
बेटी झट स्वामिनि हुई, पति को किया अनाथ
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बहुएँ कवयित्री हुईँ, सासें पीटें माथ
बना-खिला निंदा सुनें, कविताओं में साथ
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पति बच्चे घर त्याज्य हैं, अब वरेण्य है मंच
डिनर एक के साथ लें, अन्य कराता लंच
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वजन प्रसाधन का अधिक, और देह का न्यून
जेब कटा हसबैंड जी, मुँह लटकाए प्यून
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तनिक न निज भाषा रुचे, परभाषा का मोह
पेट पाल हिंदी रही, फिर भी हिंदी-द्रोह
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काम पड़े पर कह रहे, आप गधे को बाप
काम नहीं तो लग रहा, गधा पूत को बाप
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संजीव
४-४-२०२०
९४२५१८३२४४
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 4 अप्रैल 2021
व्यंग्यपरक दोहे
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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