कार्यशाला : दोहा से कुण्डलिया
जाने कितनी हो रही अपने मन में हूक।
क्यों होती ही जारही अजब चूक पर चूक। - रामदेव लाल 'विभोर'
अजब चूक पर चूक, विधाता की क्या मर्जी?
फाड़ रहा है वस्त्र, भूलकर सिलना दर्जी
हठधर्मी या जिद्द, पड़ेगी मँहगी कितनी?
ले जाएगी जान, न जाने जानें कितनी - संजीव
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021
दोहा से कुण्डलिया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें