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शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

दोहा से कुण्डलिया

कार्यशाला : दोहा से कुण्डलिया
जाने कितनी हो रही अपने मन में हूक।
क्यों होती ही जारही अजब चूक पर चूक। - रामदेव लाल 'विभोर'
अजब चूक पर चूक, विधाता की क्या मर्जी?
फाड़ रहा है वस्त्र, भूलकर सिलना दर्जी
हठधर्मी या जिद्द, पड़ेगी मँहगी कितनी?
ले जाएगी जान, न जाने जानें कितनी - संजीव

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