कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मुक्तिका:: कहीं निगाह... संजीव 'सलिल'

                                                मुक्तिका::
                                                                          
कहीं निगाह...

संजीव 'सलिल'
*
कदम तले जिन्हें दिल रौंद मुस्कुराना है.
उन्ही के कदमों में ही जा गिरा जमाना है

कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..

न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..

पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..

जुलुम की उनके कोई इन्तेहां नहीं लोगों
मेरी रसोई के आगे रखा पाखाना है..

किसी का कौन कभी हो सका या होता है?
अकेले आये 'सलिल' औ' अकेले जाना है..

चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..

गुलाब दे रहे हम तो न समझो प्यार हुआ.
'सलिल' कली को कभी खार भी चुभाना है..

*******************************
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

10 टिप्‍पणियां:

Admin Open Books online. ने कहा…

यह ग़ज़ल ( तरही मुक्तिका) इतनी खुबसूरत और उम्द्दा कही गई है कि उसे नजरअंदाज करना कम से कम मेरे वश मे तो नहीं ही है, इसलिये इस ग़ज़ल को मुख्य ब्लॉग पर स्थान दिया जा रहा है | इस खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद स्वीकार करें |

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

aapkee kadradanee ka shukriya.

ravi kumar giri 'gurujee' ने कहा…

न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..

jai ho sir ji

Asheesh Yadav ने कहा…

salil ji saadar pranaam,
aap ki is behad rochak ghazaal ko padh kar mai ati harshit hu. aap ke dwara kahi gayi panktiya mai in par koi comment bhi karu to kaise.
kya khub kaha hai aapne ki,
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
aur
चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

मिले आशीष तो गिरि को भी समंदर कह दें.
हमें एडमिन से नई मुक्तिका छापना है..

हा... हा... हा...

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh): ने कहा…

यह ग़ज़ल हास्य का पुट लिए हुए बदलते रिश्तों और बदलती मानसिकता पर करारी चोट करती है| और बहुत ही सरल भाषा में अपनी बात कह जाती है|
बहुत सुन्दर|

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

यकीनन बहुत सोच विचार कर लिखा लगता है:

न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..

पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

वाह आचार्य जी वाह,
यही फायदा साहित्यकारों के संगत का है, अलग अलग रंग दिखता रहता है,
आपका यह रंग बहुत ही दिलचस्प लगा,
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल निकाले है सर,
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
आज की परिवेश पर चोट करती शानदार शे'र , और ससुर जी को समर्पित उस शे'र का तो कहना ही क्या है ,बहुत खूब , मैं तो आनंद ले रहा हूँ जम कर , हा हा हा हा ,

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

नवीन बागी का प्रताप देख लो यारों.
लड़ा के नैन उन्हें नैन में बसाना है..

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

हा हा हा हा हा बहुत खूब आचार्य जी,

कुछ सीखने की तमन्ना है दिल मे बागी,
आचार्य के पैरो के पास बैठ पा जाना है ,