tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post1138129644666376631..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : मुक्तिका:: कहीं निगाह... संजीव 'सलिल'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-41590629609326825632010-09-17T18:34:28.735+05:302010-09-17T18:34:28.735+05:30हा हा हा हा हा बहुत खूब आचार्य जी,
कुछ सीखने की त...हा हा हा हा हा बहुत खूब आचार्य जी,<br /><br />कुछ सीखने की तमन्ना है दिल मे बागी,<br />आचार्य के पैरो के पास बैठ पा जाना है ,Sanjiv Verma 'Salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-7995355322088444662010-09-17T18:23:03.758+05:302010-09-17T18:23:03.758+05:30नवीन बागी का प्रताप देख लो यारों.
लड़ा के नैन उन्हे...नवीन बागी का प्रताप देख लो यारों.<br />लड़ा के नैन उन्हें नैन में बसाना है..Sanjiv Verma 'Salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-34713480449166083452010-09-17T18:16:36.846+05:302010-09-17T18:16:36.846+05:30वाह आचार्य जी वाह,
यही फायदा साहित्यकारों के संगत...वाह आचार्य जी वाह, <br />यही फायदा साहित्यकारों के संगत का है, अलग अलग रंग दिखता रहता है, <br />आपका यह रंग बहुत ही दिलचस्प लगा, <br />बहुत ही सुंदर ग़ज़ल निकाले है सर,<br />कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.<br />हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..<br />आज की परिवेश पर चोट करती शानदार शे'र , और ससुर जी को समर्पित उस शे'र का तो कहना ही क्या है ,बहुत खूब , मैं तो आनंद ले रहा हूँ जम कर , हा हा हा हा ,Ganesh Jee 'Bagi'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-61088305656229184162010-09-17T18:15:51.033+05:302010-09-17T18:15:51.033+05:30यकीनन बहुत सोच विचार कर लिखा लगता है:
न बाप-माँ क...यकीनन बहुत सोच विचार कर लिखा लगता है:<br /><br />न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.<br />करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..<br /><br />पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.<br />न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..Naveen C Chaturvedinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-42899285626664969212010-09-17T10:38:51.898+05:302010-09-17T10:38:51.898+05:30यह ग़ज़ल हास्य का पुट लिए हुए बदलते रिश्तों और बदल...यह ग़ज़ल हास्य का पुट लिए हुए बदलते रिश्तों और बदलती मानसिकता पर करारी चोट करती है| और बहुत ही सरल भाषा में अपनी बात कह जाती है|<br />बहुत सुन्दर|राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh):noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-84280650846517563122010-09-17T07:51:38.944+05:302010-09-17T07:51:38.944+05:30मिले आशीष तो गिरि को भी समंदर कह दें.
हमें एडमिन स...मिले आशीष तो गिरि को भी समंदर कह दें.<br />हमें एडमिन से नई मुक्तिका छापना है..<br /><br />हा... हा... हा...दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-45080217359264833792010-09-17T07:48:54.676+05:302010-09-17T07:48:54.676+05:30salil ji saadar pranaam,
aap ki is behad rochak gh...salil ji saadar pranaam,<br />aap ki is behad rochak ghazaal ko padh kar mai ati harshit hu. aap ke dwara kahi gayi panktiya mai in par koi comment bhi karu to kaise.<br />kya khub kaha hai aapne ki,<br />पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.<br />न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..<br />aur<br />चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.<br />सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..Asheesh Yadavnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-28787853443280266252010-09-17T07:48:27.972+05:302010-09-17T07:48:27.972+05:30न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम सस...न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.<br />करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..<br /><br />jai ho sir jiravi kumar giri 'gurujee'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-27615341389346835852010-09-17T07:48:00.475+05:302010-09-17T07:48:00.475+05:30aapkee kadradanee ka shukriya.aapkee kadradanee ka shukriya.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-80762661811034443222010-09-17T07:47:37.025+05:302010-09-17T07:47:37.025+05:30यह ग़ज़ल ( तरही मुक्तिका) इतनी खुबसूरत और उम्द्दा ...यह ग़ज़ल ( तरही मुक्तिका) इतनी खुबसूरत और उम्द्दा कही गई है कि उसे नजरअंदाज करना कम से कम मेरे वश मे तो नहीं ही है, इसलिये इस ग़ज़ल को मुख्य ब्लॉग पर स्थान दिया जा रहा है | इस खुबसूरत ग़ज़ल पर दाद स्वीकार करें |Admin Open Books online.noreply@blogger.com