दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
दोहा सलिला : भू-नभ सीता-राम हैं ------संजीव 'सलिल'
दोहा सलिला :
संजीव 'सलिल'
*
भू-नभ सीता-राम हैं, दूरी जलधि अपार.
कहाँ पवनसुत जो करें, पल में अंतर पार..
चंदा वरकर चाँदनी, हुई सुहागिन नार.
भू मैके आ विरह सह, पड़ी पीत-बीमार..
दीपावली मना रहा जग, जलता है दीप.
श्री-प्रकाश आशीष पा, मन मणि मुक्ता सीप.
जिनके चरण पखार कर, जग हो जाता धन्य.
वे महेश तुझ पर सदय,'सलिल' न उन सा अन्य..
दो वेदों सम पंक्ति दो, चतुश्वर्ण पग चार.
निशि-दिन सी चौबिस कला, दोहा रस की धार..
नर का क्या, जड़ मर गया, ज्यों तोडी मर्याद.
नारी बिन जीवन 'सलिल', निरुद्देश्य फ़रियाद..
जिनके चरण पखार कर, जग हो जाता धन्य.
वे महेश तुझ पर सदय,'सलिल'न उन सा अन्य..
खरे-खरे प्रतिमान रच, जी पायें सौ वर्ष.
जीवन बगिया में खिलें, पुष्प सफलता-हर्ष..
चित्र गुप्त जिसका सकें, उसे 'सलिल' पहचान.
काया-स्थित ब्रम्ह ही, कर्म देव भगवान.
**********************************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
चिप्पियाँ Labels:
acharya sanjiv 'salil',
Contemporary Hindi Poetry,
doha,
great indian bustard,
hindee filmon ke madhur geet,
jabalpur,
samyik hindi kavya
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें