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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

मुक्तिका: प्रश्न वन संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
प्रश्न वन

संजीव 'सलिल'
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प्रश्न वन में रह रहे हैं आजकल.
उत्तरों बिन दह रहे हैं आजकल..

शिकायत-शिकवा किसी से क्या करें?
जो अचल थे बह रहे आजकल..

सत्य का वध नुक्कड़ों-संसद में कर.
अवध खुद को कह रहे हैं आजकल..

काबिले-तारीफ हिम्मत आपकी.
सच को चुप रह सह रहे हैं आजकल..

लाये खाली हाथ भरकर जायेंगे.
जर-जमीनें गह रहे हैं आजकल..

ज्यों की त्यों चादर रहेगी किस तरह?
थान अनगिन तह रहे हैं आजकल..

ढाई आखर पढ़ न पाये जो 'सलिल'
सियासत में शह रहे हैं आजकल..

'सलिल' सदियों में बनाये मूल्य जो
बिखर-पल में ढह रहे हैं आजकल..

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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

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