मुक्तिका:
चुप रहो...
संजीव 'सलिल'
*
महानगरों में हुआ नीलाम होरी चुप रहो.
गुम हुई कल रात थाने गयी छोरी चुप रहो..
टंग गया सूली पे ईमां मौन है इंसान हर.
बेईमानी ने अकड़ मूंछें मरोड़ी चुप रहो..
टोफियों की चाह में है बाँवरी चौपाल अब.
सिसकती कदमों तले अमिया-निम्बोरी चुप रहो..
सियासत की सड़क काली हो रही मजबूत है.
उखड़ती है डगर सेवा की निगोड़ी चुप रहो..
बचा रखना है अगर किस्सा-ए-बाबा भारती.
खड़कसिंह ले जाये चोरी अगर घोड़ी चुप रहो..
याद बचपन की मुक़द्दस पाल लहनासिंह बनो.
हो न मैली साफ़ चादर 'सलिल' रहे कोरी चुप रहो..
चुन रही सरकार जो सेवक है जिसका तंत्र सब.
'सलिल' जनता का न कोई धनी-धोरी चुप रहो..
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-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 5 सितंबर 2010
मुक्तिका: चुप रहो... संजीव 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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4 टिप्पणियां:
salil ji
pranaam,
etna badi baat kahi aapne, in charecters ke madhyam se.
वाह वाह ,
बहुत खूब,
सरल और व्यंगात्मक भाषा मे लिखी इस रचना के लिये साधुवाद,
माओवाद के पैरो तलक कुचल रहे माँ भारती के लाल,
बैठ लाल कोठी मे खीच रहे सियासत की डोरी चुप रहो,
Bahut sunder....apne lekhni ke jariye sunder sandesh diya hai aapne..dhanyabaad
बिटवा भाई
चिरंजीव भवः
चुन चुन कर सटीक प्रहार
पर नेता तो समझें
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