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कन्हैयालाल नंदन |
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
वे बिना पर के ही उड़ गए, दोपहर का भी इंतजार नहीं किया पर दोपहर आ रही है। बस नंदन जी नहीं हैं, उनकी स्मृतियाँ हैं।
- अविनाश वाचस्पति
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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कन्हैयालाल नंदन |
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