|  | 
| कन्हैयालाल नंदन | 
हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
वे बिना पर के ही उड़ गए, दोपहर का भी इंतजार नहीं किया पर दोपहर आ रही है। बस नंदन जी नहीं हैं, उनकी स्मृतियाँ हैं।
- अविनाश वाचस्पति
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
|  | 
| कन्हैयालाल नंदन | 
 करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य.. 
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य.. 
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें