
श्री प्रकाश शुक्ल
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१.
जाने क्यों यह मन में आया......
प्रकृति जननि आँचल में अपने, भरे हुए अनगिनत सुसाधन
चर-अचर सभी जिन पर आश्रित, करते सुचारू जीवनयापन
बढ़ती आबादी, अतिशय दोहन, उचित और अनुचित प्रयोग
साधन नित हो रहे संकुचित, दिन प्रतिदिन बढ़ता उपभोग
यान, वाहनों की फुफकारें, जला रहीं उनको प्रतिपल
असमय उनका निधन देख, तमतमा रहा माँ का चेहरा
ऋतुएं बदलीं, हिमगिरि पिघले, दैवी प्रकोप, आकर ठहरा
दुख है, भाव, न, जाने क्यों यह, मन में आया अब तक
भूमण्डलीय ताप बढ़ने के कारण, मानवजन्य उपकरण
सामूहिक सद्भाव सहित, खोजेंगे हल उतम प्रगाड़ गतिविधियाँ वर्जित होंगी, परिमण्डल रखतीं जो बिगाड़
निश्चित उद्देश्य न पूरे हों , कटिबद्ध रहेंगे हम तब तक
दुख है, भाव, न, जाने क्यों यह, मन में आया अब तक
२.
जाने क्यों यह मन में आया
"जाने क्यों यह मन में आया?" अभी-अभी तत्पर
क्या होता नवगीत, विधा क्या, क्या कुछ शोध हुई इस पर?
कौन जनक, उपजा किस युग में, कौन दे रहा इसको संबल?
प्रश्न अनेकों मन में उपजे, सोया, जाग्रत हुआ मनोबल.
कैसे यह परिभाषित, क्या क्या जुडी हुयी इस से आशाएँ?
हिंदी भाषा होगी समृद्ध , क्या विचक्षणों की ये तृष्णाएँ?
शंका रहित प्रश्न यह लगते, सुनकर केवल मधुर नाम
पर नामों का औचित्य तभी, जब सुखद, मनोरम हो परिणाम
हिंदी साहित्य सदन में क्या ये, होंगे सुदीप्त दीपक बनकर
जिनकी आभा से आलोकित, सिहर उठे मानव अन्तःस्वर?
कैसे टूटा मानस मन, पायेगा अभीष्ट साहस, शक्ति?
बिना भाव संपूरित जब, होगी केवल रूखी अभिव्यक्ति?
छोड़ रहा हूँ खुले प्रश्न ये, आज प्रबुद्धों के आगे
नवगीतों की रचना में, वांछित क्यों अनजाने धागे.
(टीप: उक्त दोनों गीत ई कविता की समस्या पूर्ति में प्रकाशित हुए थे.
पाठक इनमें निहित प्रश्नों पर विचार कर उत्तर, सुझाव या अन्य जानकारियाँ बाँटें तो सभी का लाभ होगा. गीत, नवगीत, अगीत, प्रगीत, गद्य गीत आदि पर भी जानकारी आमंत्रित है.-सं.)
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२८ अगस्त २०१०
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