मृदुल कीर्ति जी, ऑस्ट्रेलिया.
मूल:
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति,
तदहं भक्त्युप हृतंश्रनामी प्रयतात्मनः.II गीता ९/२६
भावानुवाद:
प्रभु जी तोरे मंदिर कैसे आऊँ ?
दीन हीन हर भांति विहीना, क्या नैवेद्य चढाऊँ?
गीता कथित तुम्हारे वचना, घनी शक्ति अब पाऊँ.
भाव पुष्प, सुमिरन की माला, असुंवन नीर चढाऊँ .
फल के रूप करम फल भगवन , बस इतना कर पाऊँ .
पत्र रूप में तुलसी दल को, कृष्णा भोग लगाऊँ.
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