पद्मा सचदेव
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पद्मा सचदेव, (जन्म १७ अप्रैल १९४० को पुरमण्डल, जम्मू) डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री थीं। वे हिन्दी में भी लिखती रहीं। पद्मा ने प्रारंभिक दिनों में जम्मू और कश्मीर रेडियो में स्टाफ कलाकार के पद पर एवं बाद में दिल्ली रेडियो में डोगरी समाचार वाचिका के पद पर कार्य किया। उनहोंने हिन्दी और डोगरी गद्य पर भी वैसा ही अधिकार दिखाया जो डोगरी कविता पर। अपने तीन और कविता संग्रहों के पश्चात जम्मू कश्मीर की कला संस्कृति और भाषा अकादमी से उन्हें "रोब ऑफ आनर" मिला। वे उ.प्र. हिन्दी सहित्य अकादमी पुरस्कार, राजाराम मोहन राय पुरस्कार से भी सम्मानित हुई। डोगरी कहानी के क्षेत्र में उनके आगमन से एक नई मानसिकता व नई संवेदन शक्ति का संचार हुआ। "मेरी कविता मेरे गीत" के लिए उन्हें १९७१ साहित्य अकादमी पुरस्कार, वर्ष २००१ में पद्म श्री और वर्ष २००७-०८ में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया। उनके पिता प्रो॰ जयदेव शर्मा हिन्दी व संस्कृत के प्रकांड पंडित थे, जो १९४७ में भारत के [विभाजन] के दौरान शहीद हुए थे। वे अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। उनकी शादी १९६६ में 'सिंह बंधू' नाम से प्रचलित सांगीतिक जोड़ी के गायक 'सुरिंदर सिंह' से हुई।
पद्मा जी की कृतियाँ
नौशीन. किताबघर, १९९५
मैं कहती हूँ आखिन देखि (यात्रा वृत्तांत). भारतीय ज्ञानपीठ, १९९५
भाई को नही धनंजय. भारतीय ज्ञानपीठ, १९९९
अमराई. राजकमल प्रकाशन, २०००
जम्मू जो कभी सहारा था (उपन्यास). भारतीय ज्ञानपीठ, २००३
फिर क्या हुआ?, जानेसवेरा और पार्थ सेनगुप्ता के साथ. नेशनल बुक ट्रस्ट, २००७
इसके अलावा तवी ते चन्हान, नेहरियाँ गलियाँ, पोता पोता निम्बल, उत्तरबैहनी, तैथियाँ, गोद भरी तथा हिन्दी में एक विशिष्ठ उपन्यास 'अब न बनेगी देहरी' आदि।
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